संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी
भारत, संयुक्त राष्ट्र संघ में एक महत्वपूर्ण देष है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने
के नाते भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ में एक विषेश स्थान प्राप्त है। वर्तमान में,
संयुक्त राष्ट्र संघ की छह आधिकारिक
भाषाएँ - अंग्रेज़ी, अरबी, चीनी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश हैं। भारत काफी
लम्बे समय से यह कोशिश कर रहा है कि भारत की संस्कृति की पहचान हिंदी भाषा को संयुक्त
राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं में शामिल किया जाए। भारत का यह दावा इस आधार पर है
कि हिंदी विश्व में बोली जाने वाली दूसरी बड़ी भाषा है और विश्व भाषा के रूप में स्थापित
हो चुकी है। भारत का यह दावा आज इसलिए और ज्यादा मजबूत हो जाता है क्योंकि आज का भारत
विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ-साथ चुनिंदा आर्थिक शक्तियों में भी शामिल
हो चुका है। अगर यूँ कहें कि भारत विश्व अर्थव्यवस्था का नेतृत्व कर रहा है तो अतिश्योक्ति
नहीं होगी। भारत के आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने का असर दिखने लगा है। अमेरिका में
एमबीए के छात्रों के लिए दो वर्षीय हिंदी पाठ्यक्रम शुरू किया जा रहा है। यूनिवर्सिटी
ऑफ पेनसिल्वेनिया के फिलाडेल्फिया स्थित लाउडर इंस्टीट्यूट द्वारा तैयार इस हिंदी कार्यक्रम
में हिंदी भाषा का प्रशिक्षण, भारतीय संस्कृति, राजनीति, मान्यताओं और व्यापार से संबंधित अध्ययन शामिल है। भारत में ब्रिटिश उच्चायोग ने
भारतीयों से उन्हीं की भाषा में सीधे जुड़ने के लिए हिंदी वेबसाइट शुरू की है। चीन की
राजधानी बिजिंग में भारतीय उच्चायोग के सांस्कृति केंद्र में हिंदी शिक्षण प्रारंभ
किया गया है। चीन के नौ विश्वविद्यालयों में हिंदी विभाग बनाया गया है। विश्व में
भारत का कद बहुत बड़ा हो गया है। भारतीय मूल के लोग विश्व के लगभग हर एक देश में भारतीय
सभ्यता एवं संस्कृति के दूत के रूप में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को प्रचारित-प्रसारित
कर रहे हैं। हिंदी भाषा विश्व में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के संप्रेषण की प्रमुख
भाषा है। विश्व का प्रत्येक देश यह जानता है कि हिंदी भाषा का भारतीयों के लिए क्या
महत्व है। शायद इसीलिए विश्व की सबसे बड़ी ताक़त अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा
अपने देश में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का स्वागत हिंदी शब्दों ‘‘आपका स्वागत है।‘‘ में करते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति
पर हिंदी का जादू बना रहता है। भारतीय प्रधानमंत्री के आमंत्रण पर वह भारत में आते
हैं और चुनिंदा हिंदी शब्दों ‘राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, ‘धन्यवाद, ‘पंचतंत्र’और ‘जय हिंद’ का प्रयोग करके भारतीयों के दिलों को छूकर तालियाँ एवं
वाहवाही बटोर ले जाते हैं।
हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाए जाने की मुहिम की शुरूआत
भारत के नागपुर शहर में 10 जनवरी 1975 को आयोजित प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन से हुई थी। इस सम्मेलन की अध्यक्षता देश
की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी। इस सम्मेलन में उन्होंने हिंदी
के अंतर्राष्ट्रीय महत्व को चिह्नित करते हुए कहा था कि हिंदी विश्व की महान भाषाओं
में से एक है। हिंदी करोड़ों लोगों की मातृभाषा है और करोड़ों लोग इसे दूसरी भाषा के
रूप में बोलते हैं। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन में ही मॉरीशस के सरकारी प्रतिनिधि
मंडल के नेता श्री दयानंद वसंत राय ने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को आधिकारिक भाषा
के रूप में मान्यता देने के लिए प्रस्ताव रखा था जिसका समर्थन सोवियत संघ (अर्थात्
रूस) के प्रतिनिधि मंडल के नेता डॉ. ई.पी. चेलिशोव सहित विश्व भर के देशों से आए प्रतिनिधियों
ने किया था। इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री
डॉ. शिवसागर रामगुलाम ने कहा था कि मॉरीशस संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को उसका उचित
स्थान दिलाने के लिए सदैव तत्पर रहेगा। उन्होंने तो यहां तक कहा था कि हिंदी भारत की
राष्ट्रभाषा तो है, लेकिन हमारे लिए यह अधिक महत्वपूर्ण है कि हिंदी एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। मॉरीशस,
सूरीनाम, गयाना, फीजी और अफ्रीका के कई देशों
को इस बात का गर्व है कि भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय रूप प्रदान
करने में उनका योगदान शामिल है। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन की सफलता इस रूप में प्रकट
है कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिए जाने का प्रस्ताव पारित किया गया
था। यह सफलता इस रूप में और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है कि एक विदेशी राष्ट्र (मॉरीशस) ने हिंदी को संयुक्त
राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिए जाने का प्रस्ताव रखा था और विश्व
के अन्य देशों के साथ एक विदेशी राष्ट्र (रूस) ने ही इस प्रस्ताव का समर्थन किया था। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन
एवं सफलता का श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दिए जाने पर शायद ही किसी
को एतराज़ होगा। उल्लेखनीय है कि दूसरा विश्व हिंदी सम्मेलन 28-30 अगस्त 1976 तक मॉरीशस में ; तीसरा विश्व हिंदी सम्मेलन 28-30 अक्तूबर 1983 तक नई दिल्ली में; चौथा विश्व हिंदी सम्मेलन 2-4 दिसंबर 1993 तक मॉरीशस में; पॉंचवां विश्व हिंदी सम्मेलन 4-8 सितंबर 1996 तक त्रिनिदाद व टोबेगो में;
छठा विश्व हिंदी सम्मेलन 14-18 सितंबर 1999 तक लंदन में; सातवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन
5-9 जून 2003 तक सूरीनाम और आठवाँ विश्व
हिंदी सम्मेलन 13-15 जुलाई 2007 तक न्यूयार्क में आयोजित किया गया था। इन सभी सम्मेलनों में भी हिंदी को संयुक्त
राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाए जाने का संकल्प दोहराया गया था।
संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यविधि नियमावली के आठवें भाग में
नियम 51 से 57 में संयुक्त राष्ट्र संघ की
आधिकारिक भाषाओं के संबंध में प्रावधान किया गया है। इन नियमों में संयुक्त राष्ट्र महासभा तथा इसकी विभिन्न समितियों
एवं उपसमितियों के लिए आधिकारिक तथा कार्य संचालन की भाषाओं की व्यवस्था की गई है।
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रथम अधिवेशन में ही अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को छोड़कर इसके सभी संगठनों
के लिए अंग्रेज़ी, फ्रेंच, रूसी, चीनी और स्पेनिश को आधिकारिक
भाषा के रूप में स्वीकार किया गया था, परन्तु इन भाषाओं में से केवल दो भाषाओं अंग्रेज़ी और फ्रेंच
को ही कार्यसंचालन की भाषा के रूप में मान्यता दी गई थी। स्पेनिश भाषा को वर्ष 1948 में कार्यसंचालन की भाषा के
रूप में मान्यता दी गई थी। चीनी और रूसी भाषाओं को कार्यसंचालन की भाषा का दर्जा प्राप्त
करने के लिए लम्बा संघर्ष एवं इंतज़ार करना पड़ा था। स्पेनिश को संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यसंचालन की भाषा के रूप में मान्यता दिए जाने
के 20 वर्षों के बाद 21 दिसम्बर 1968 को संयुक्त राष्ट्र संघ के 23वें अधिवेशन में संकल्प पारित
कर रूसी भाषा को कार्यसंचालन की भाषा के रूप में मान्यता प्रदान की गई थी। इसके बाद,
18 दिसम्बर 1973 को संयुक्त राष्ट्र संघ के 28वें अधिवेशन में संकल्प पारित
कर चीनी (मंदारिन) भाषा को कार्यसंचालन की भाषा के रूप में मान्यता प्रदान की गई थी।
गौरतलब है कि 18 दिसम्बर 1973 को संयुक्त राष्ट्र संघ के 28वें अधिवेशन में जिस संकल्प के अंतर्गत चीनी (मंदारिन) भाषा को कार्यसंचालन की
भाषा के रूप में मान्यता प्रदान की गई थी, उसी संकल्प के अंतर्गत ही अरबी भाषा को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक और कार्यसंचालन की भाषा के
रूप में मान्यता दी गई थी। अरबी भाषा को स्पेनिश, रूसी और चीनी (मंदारिन) भाषाओं की तरह संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यसंचालन की भाषा
बनने के लिए ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी, जिसकी एक बड़ी वज़ह अरबी-भाषी देशों द्वारा इस मद में
होने वाले खर्चों को वहन किए जाने की पहले ही सहमति प्रदान करना था। यहां पर यह उल्लेख
करना प्रासंगिक होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ में लगभग 12 सदस्य देश अरबी-भाषी हैं जोकि आर्थिक रूप से संपन्न
हैं और विश्व की राजनीति और अर्थव्यवस्था में अच्छा खासा दख़ल रखते हैं। इसके अलावा,
अरबी भाषा को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं में
आसानी से शामिल किए जाने की एक वज़ह यह भी थी कि अरब देशों ने अरबी भाषा को संयुक्त
राष्ट्र संघ में कार्यान्वित किए जाने पर होने वाले शुरूआती तीन वर्षों के खर्चों को वहन
किया था।
भारत आज भी हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं के समूह
में शामिल किए जाने के लिए निरन्तर प्रयासरत् है। प्रत्येक विश्व हिंदी सम्मेलन में
इस संकल्प को दोहराया जाता है कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप
में स्थापित किया जाएगा। सूरीनाम में 6 से 9 जून 2003 तक आयोजित सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के
नेतृत्व वाली सरकार के विदेश राज्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह ने यह घोषणा भी की थी
कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिए जाने के लिए 100 करोड़ रुपए तक खर्च करने के लिए
तैयार है। गौरतलब है कि वर्ष 1978 में संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देने वाले पहले भारतीय नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी थे
जिन्होंने विदेश मंत्री के तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण दिया था। उन्हीं का अनुसरण
करते हुए बाद के विदेश मंत्री श्री श्यामनंदन मिश्र तथा श्री पी.वी. नरसिंहराव ने
संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में अपना भाषण दिया था। वर्ष 2010 में भारत के एक प्रमुख राजनीतिक दल के नेता श्री राजनाथ
सिंह ने भी संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में अपना भाषण दिया था और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ से अपील की थी कि हिंदी
को आधिकारिक भाषा के तौर पर शामिल किया जाए।
हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल करने के लिए
संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यविधि नियमावली 51 में संशोधन करना होगा। इस संशोधन के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के आधे से अधिक देशों अर्थात्
लगभग 95 देशों की सहमति की आवश्यकता
होगी। यदि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया जाता है तो भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ के सचिवालय में हिंदी भाषा
एवं अनुवाद क्षेत्र के जानकार अधिकारियों एवं कर्मचारियों को नियुक्त करना होगा उनपर
होने वाले निरन्तर खर्च उठाने होंगे। एक अनुमान के अनुसार, हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल किए जाने पर
भारत को प्रत्येक वर्ष लगभग 14 मिलियन डॉलर (लगभग 66 करोड़ रुपए) का खर्च वहन करना होगा। सूरीनाम, त्रिनिदाद-टोबैगो, नेपाल, मॉरीशस, फिजी जैसे जिन देशों में हिंदी बोली और समझी जाती है
वे राजनीतिक और आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं हैं कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा
दिलाने और सचिवालयीय सेवाओं पर होने वाले निरन्तर खर्चों के वहन में भारत की ज्यादा
कुछ मदद कर सकें।
भारत आज राजनीतिक और आर्थिक रूप
से इतना सक्षम है कि वह हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए सदस्यों
देशों का जरूरी समर्थन जुटा सकता है और सचिवालयीय सेवाओं पर होने वाले निरन्तर खर्च
को वहन कर सकता है। लगभग 19 वर्षों के बाद वर्ष 2010 में भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् का अस्थायी सदस्य मनोनीत हुआ है। यह भारत की बढ़ती राजनीतिक
और आर्थिक ताक़त का ही परिणाम है कि वह भारी बहुमत से सुरक्षा परिषद् का अस्थायी सदस्य
मनोनीत हुआ है। हाल ही में, अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् के स्थायी
सदस्य के रूप में शामिल किए जाने का समर्थन किया है। यदि भारत को सुरक्षा परिशद् का
स्थायी सदस्य मनोनीत किया जाता है तो भारत विश्व के सबसे शक्तिशाली देशों की सूची
में शामिल हो जाएगा जिनके पास विषेशाधिकार अर्थात् वीटो पावर होती है। आज भारत विश्व
अर्थव्यवस्था को दिशा प्रदान कर रहा है या यूँ कहें कि भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व
अर्थव्यवस्था का नेतृत्व कर रही है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। भारत की आर्थिक सम्पन्नता
का एक उदाहरण विश्वभर के देश हाल ही में देख चुके हैं। भारत ने अक्तूबर 2010 में दिल्ली में 19वें राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन
किया था। एक अनुमान के अनुसार, इन राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन पर पिछले किसी भी राष्ट्रमंडल खेलों के मुकाबले
सबसे अधिक खर्च किया गया था। दिल्ली में आयोजित 19वें राष्ट्रमंडल खेलों पर सैकड़ों-हजारों करोड़ रुपए
खर्च किए गए थे। भविष्य में भारत में एशियाई खेलों और ओलम्पिक खेलों का आयोजन किए
जाने की भी प्रबल संभावना है।
हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल किए जाने के
लिए भारत सरकार द्वारा गंभीर एवं त्वरित प्रयास किए जाने की जरूरत है। जापान,
जर्मनी और इजराइल आदि कई देश
भी अपनी-अपनी भाषा को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलवाने के लिए पिछले कई वर्षों से प्रयत्नशील
हैं। यहाँ तक कि इन देशों ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में अनुवाद एकक भी स्थापित किया हुआ है। उल्लेखनीय
है कि जापान, जर्मनी और इजराइल आदि देशों में उन्हीं की भाषा में कार्य किया जाता है। वे अपनी
भाषा को राष्ट्रीयता से जोड़कर चलते हैं और राष्ट्रीयता उनके लिए सर्वोपरि है। इन
देशों की भाषा हिंदी को इस रूप में चुनौती दे सकती हैं कि हिंदी तो भारत में ही दोयम
दर्जे की भाषा है। ऐसी प्रत्याशित स्थिति प्रकट न हो इसके लिए प्रत्येक भारतीय नागरिक
को प्रयत्न करने की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि भारतीय नागरिक हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने
के लिए अपना योगदान नहीं देंगे। जब कभी भी भारत में राष्ट्रीय अस्मिता, सभ्यता एवं संस्कृति का सवाल
उठ खड़ा होता है तो देश में एकता का एक ऐसा विशाल प्रदर्शन दिखाई देता है जो किसी भी
अन्य देश के लिए प्रेरणास्रोत होता है। उदाहरण के तौर पर, दिल्ली में 19वें राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन पर ही देशी-विदेशी मीडिया ने सवाल खड़े कर दिए थे। विश्व के
देशों को इस बात की आशंका थी कि भारत इतने बड़े खेल समारोह का सफलतापूर्वक आयोजन नहीं
कर पाएगा। भारत सरकार एवं दिल्ली सरकार ने सरकारी खजाने के दरवाजे खोल दिए थे। स्वयंसेवकों,
इंजीनियरों, मजदूरों, सरकारी एजेंसियों के अधिकारियों
एवं कर्मचारियों तथा नेताओं आदि ने भारतीय नागरिकों के रूप में राष्ट्रीय स्वाभिमान,
अस्मिता, सभ्यता एवं संस्कृति के महत्व
को सर्वोपरि रखते हुए दिन-रात एक कर दिए थे। अंततोगत्वा, भारत और विश्व के अन्य देशों के नागरिकों ने दिल्ली
में आयोजित 19वें राष्ट्रमंडल खेलों के अविस्मरणीय उद्घाटन एवं समापन समारोह को देखकर दाँतो तले अँगुली
दबा ली थी। अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक संघ ने भी यह मान लिया था कि भारत में विश्व के
सबसे बड़े खेल आयोजन को आयोजित करने की क्षमता है। इसके अलावा, जब कभी भी भारत के सामने किसी
प्रकार की चुनौती पेश हुई तो देश के लोगों ने जाति-धर्म का भेद को दरकिनार करते हुए
एकजुट होकर उस चुनौती का सामना किया है।
इसके अलावा, भारत सरकार एवं हिंदी सेवी संस्थाओं को भी इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने
की जरूरत है। भारत सरकार को इस संबंध में तैयार रहने की जरूरत है कि हिंदी को संयुक्त
राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलवाए जाने पर होने वाले एकमुश्त खर्च
और सचिवालयीय सेवाएं प्रदान किए जाने पर भविष्य में होने वाले निरन्तर खर्च को सहर्ष
पूरा किया जाएगा। भारत संघ की राजभाषा नीति
को सरकारी कार्यालयों में प्रभावी ढंग से कार्यान्वित किए जाने की जरूरत है। इस कार्यान्वयन
पर लगातार और प्रभावी मॉनीटरिंग की आवश्यकता है। इलैक्ट्रोनिक एवं प्रिंट मीडिया के
माध्यम से इस बारे में भारतीय नागरिकों को अवगत कराने की जरूरत है कि भारत विश्व की
सर्वोच्च संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को आधिकारिक दर्जा दिलाने के लिए गंभीरता से प्रयत्नशील है जिसके
लिए भारतीय नागरिकों का इस रूप में सहयोग अपेक्षित है कि वे अपने कामकाज, बोलचाल आदि में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करें ताकि
विश्व के अन्य देश भारत से यह सवाल नहीं कर सकें कि आप जिस भाषा को विश्व की सर्वोच्च
संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक एवं कामकाज की भाषा बनाना
चाहते हैं वह भाषा तो भारतीय नागरिक स्वयं इस्तेमाल नहीं करते हैं।
हम भारतीयों को इस बारे में कोई संशय नहीं होना चाहिए कि आगामी
वर्षों में भारत विश्व के सबसे शक्तिशाली देशों की भांति संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् का स्थायी
सदस्य होगा और हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं में शामिल होगी। अब देखना यह है कि भारत सुरक्षा परिषद्
का स्थायी सदस्य पहले बनता है या हिंदी संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा पहले बनती है। ये
दोनों लक्ष्य एक-दूसरे के पूरक हैं।
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