गौरक्षा हेतु विचारणीय बिन्दु
- गाय को राष्ट्रीय महत्व का पशु घोषित किया जाना चाहिए। हिन्दू संस्कृति में गाय का दूध अमृत माना गया है।
- देश में प्रत्येक गाय का स्थानीय नगरपालिका/नगर निगम में अनिवार्यत: जन्म-मृत्यु पंजीकरण होना चाहिए ताकि गायों की सही-सही संख्या मालूम होने के साथ-साथ उनके कल्याण के लिए योजनाएं तैयार करने में सहायता मिल सके।
- प्रत्येक शहर/गॉंव में नगर निगम/नगरपालिका/पंचायत के स्तर पर सरकारी खर्च से कम से कम एक-एक गौशाला होनी चाहिए।
इस गौशाला की
प्रबंधन समिति में सरकारी एवं गैर-सरकारी गणमान्य सदस्य होने चाहिएं।
गौरक्षा के
क्षेत्र में विशेष कार्य कार्य करने वाले व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व भी इस
प्रबंध समिति में होना चाहिए।
- नगर निगम/नगरपालिका/पंचायत आदि में पंजीकृत गायों द्वारा दूध देना बन्द करने के बाद उन गायों के पालकों द्वारा उन गायों के साथ क्या किया गया, इसके बारे में भी जानकारी देना अनिवार्य होना चाहिए।
- प्रत्येक गाय पालक के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि जब गाय उनके लिए लाभ की वस्तु नहीं रह जाती है अर्थात् गाय दूध देना बन्द कर देती है तो वह गाय नगर निगम/नगरपालिका/पंचायत या किसी स्वयं—सेवी संस्था की गौशाला को सौंपी जाएगी।
वर्षों तक गाय से
लाभ अर्जित करने के बाद लाभांश के रूप में यथा सामर्थ्य राशि संबंधित गौशाला को
दान रूप में दी जानी चाहिए।
- चूंकि किसी भी सरकारी/गैर-सरकारी गौशाला को चलाना आर्थिक रूप से मुश्किल हो जाता है, इसलिए लोगों को उसके शहर/गांव की गौशाला की कोई एक गाय गोद लेने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए जिसके अंतर्गत गोद लेने वाला व्यक्ति उस गाय के भरण-पोषण एवं इलाज आदि से संबंधित खर्चों का वहन करेगा।
इसके लिए, प्रत्येक गौशाला
में प्रत्येक गाय के शरीर पर प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल कर पंजीकरण संख्या का
उल्लेख होना चाहिए।
यदि आवश्यक हो और
गोद लेने वाला व्यक्ति चाहे तो उस व्यक्ति के सौजन्य की जानकारी एक छोटे एवं
हल्के सूचना-पट्ट के रूप में गाय के गले में टांगी जा सकती है।
यदि कोई एक व्यक्ति
किसी एक गाय के सभी खर्च उठाने में असमर्थ रहता है तो एक व्यक्ति गाय के भरण-पोषण
यानि हरे चारे आदि का खर्च वहन कर सकता है और अन्य व्यक्ति उस गाय के इलाज खर्च
आदि का वहन कर सकते हैं।
- चूंकि केवल सरकारी स्तर पर गौशालाओं की स्थापना और संचालन बहुत कठिन कार्य है और इसमें समय भी अधिक लगेगा, इसलिए गौशाला स्थापित करने और उसका संचालन करने की इच्छुक स्वयंसेवी संस्थाओं को उस तरह से कम दरों पर जमीन उपलब्ध करवानी चाहिए जिस प्रकार स्कूल, अस्पतला, मन्दिर आदि बनाने के लिए जमीन उपलब्ध करवाई जाती है। इसके अलावा, बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए भी आर्थिक सहयोग दिया जाना चाहिए।
- प्रत्येक गौशाला का नगर निगम/नगरपालिका/पंचायत में पंजीकरण होना चाहिए। ऐसी गौशालाओं का संचालन करने वाली संस्थाएं सोसाइटी एक्ट के तहत पंजीकृत होनी चाहिए। इन गौशालाओं को यथासंभव सरकारी अनुदान भी दिया जाना चाहिए।
- देश में केन्द्रीय सरकार के स्तर पर गौवध को रोकने के लिए सख्त कानून बनाया जाना चाहिए। राज्य सरकारों के लिए इस कानून को अपने-अपने राज्यों में लागू करना अनिवार्य होना चाहिए। गौवध को गैर-जमानती अपराध बनाना चाहिए और गौवध के मुजरिमों को कम से कम 3 वर्ष और अधिकतम 10 वर्ष की सजा होनी चाहिए।
- राष्ट्रीय स्तर पर ‘’राष्ट्रीय गौरक्षा एवं सेवा आयोग’’ का गठन होना चाहिए। इस राष्ट्रीय आयोग के अंतर्गत प्रत्येक राज्य एवं जिला स्तर पर क्रमश: ‘’राज्य गौरक्षा एवं सेवा आयोग’’ और ‘’जिला गौरक्षा एवं सेवा समिति’’ का गठन किया जाना चाहिए।
‘’राष्ट्रीय
गौरक्षा एवं सेवा आयोग’’ के अध्यक्ष माननीय प्रधानमंत्री अथवा केन्द्रीय गृह
मंत्री होने चाहिएं।
इसी तरह, ‘’राज्य गौरक्षा
एवं सेवा आयोग’’ के अध्यक्ष राज्य के मुख्यमंत्री अथवा गृहमंत्री होने चाहिएं और ‘’जिला गौरक्षा एवं
सेवा समिति’’ का अध्यक्ष वहां का सांसद या विधायक होना चाहिए।
इन आयोग एवं समिति
में वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों के अलावा गौरक्षा के क्षेत्र
में उल्लेखनीय कार्य कर चुके महानुभावों को शामिल किया जाना चाहिए।
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