09/29 सर्जिकल
स्ट्राइक : बेचारा पाकिस्तान (व्यंग्य)
29 सितम्बर
2016 की रात को पराक्रमी भारतीय सेना के जाबांज जवानों ने गुलाम कश्मीर (पीओके)
में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के लांचिंग पैडों (वह स्थान जहां से आतंकवादी
भारतीय सीमा में घुसने से पहले रूकते हैं) पर विध्वंसक कार्रवाई करते हुए अनेक
आतंकवादियों को जन्नत का टिकट थमा दिया था। 30 सितम्बर 2016 को जब तक भारतीय
सेना के अधिकारी ने प्रेस कांफ्रेंस करके इस सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में नहीं
बता दिया तब तक बेचारा पाकिस्तान शर्मिंदगी के मारे खामोश था। सेना की प्रेस
कांफ्रेंस कुछ इस तरह से थी कि हमने अपने बिगड़ैल पड़ोसी को रात में पीटा हो और
सुबह नगाड़ा पीटकर सबको बता भी दिया। पड़ोसी नाराज़ हो गया कि रात को मारा तो मारा, लेकिन
सुबह नगाड़ा पीटकर सबको बताने की क्या जरूरत थी। हम कोई पहली बार थोड़े ही पिटे
थे। जब पाकिस्तान को भारतीय सेना के प्रेस कांफ्रेस का पता चला तो उसने कहा कि
नहीं... नहीं.... हमको तो रात में सोते हुए किसी ने थप्पड़ नहीं मारा, मारा होता तो हमारी नींद नहीं खुलती। लेकिन, जब
सिक्योरिटी इंजार्च (सेना अध्यक्ष) ने बताया होगा कि ‘’साहब, आप लोग कब होश में रहते हैं, अमेरिकी भीख के पैसों
से आप लोग रातें शराबो-शबाब से रंगीन करते हैं। ‘वो’ (भारतीय सेना के जवान) आए थे और आपके मुँह पर तमाचा मारकर चले गए।‘’ यह सब सुनकर, हमारा पड़ोसी मालिक बोला, ‘’नहीं ... नहीं ... हमें किसी ने नहीं मारा लेकिन
फिर भी हमारा पड़ोसी (भारत) कह रहा है कि उसने रात में हमारी पिटाई की है तो हम
इसका बदला लेंगे।‘’
अब विदेशी भीख
के पैसों से पटाखे और फुलझडि़या खरीदकर रखने वाला पड़ोसी (पाकिस्तान) सोच रहा
होगा कि हमारे पड़ोसी (भारत) ने बहुत गलत समय चुन लिया,
दीवाली आ रही है, हम अपने पटाखे और फुलझडि़या जलाकर पड़ोसी
के घर में डाल देंगे और कह देंगे कि हमारे पड़ोसी के खुद पटाखों से ही उसका नुकसान
हुआ है। अपने मालिक के दिमाग में पक रही बेमेल
खिचड़ी की गंध सूंघकर, सिक्योरिटी इंचार्ज बोला, ‘’साहब,
हमारे पड़ोसी के पास हमारे से भी हमसे बड़़े पटाखे, बम और
फुलझडि़या हैं, अगर उसने दीवाली की रात अपने बड़े-बड़े पटाखे, बम और फुलझडि़या हमारे घर में डाल दिए और यह कह दिया कि दीवाली की रात थी, उड़कर आपके घर आ गए होंगे, तो हम कहीं के नहीं
रहेंगे .... मतलब ... रहेंगे ही नहीं।‘’
मालिक खीझकर
बोला, ‘’अरे चौकीदार, तुझे पता नहीं, समाज (विश्व) में हमारी कितनी इज्ज़त
है। हम एक डॉलर मांगते हैं तो दस डॉलर मिलते हैं। हमें कुछ तो करना ही होगा। हमारे पड़ोसी ने हमारी रात की
पिटाई को जगजाहिर करके अच्छा नहीं किया .... अच्छा नहीं किया ... अच्छा नहीं
किया।‘’
‘’जनाब, आप बताएं हमें क्या करना है।‘’ चौकीदार ... नहीं
.. नहीं ... सिक्योरिटी इंचार्ज ने मालिक से पूछा।
‘’हमें
अपने पड़ोसी से एक गुप्त समझौता करना होगा कि जब कभी भी वह हमें रात में या दिन में, अगाड़े में या पिछवाड़े में और ऊपर से या नीचे से मारेगा तो उसे जगजाहिर
नहीं करेगा। बहुत बेइज्जती होती है। छोटे पड़ोसियों की भी तो कुछ इज्जत होती है।‘’ मालिक ने लम्बी साँस लेते हुए कहा।
‘’मालिक, हमारे पड़ोस वाले मकान में कोई दमदार मकान मालिक आया है। वो पहले हाथ मिलाता
है, साथ बिठाता है, खिलाता-पिलाता है लेकिन
उसे आँख दिखाने पर बहुत मारता भी है। अब ऐसे मकान मालिक से कौन बात करेगा?’’ सिक्योरिटी इंचार्ज बोला।
‘’मैं मौके
का इंतज़ार करता हूँ, देखता हूँ ... पड़ोसी की भतीजी की शादी
का मौका ठीक रहेगा। मैं उसे बधाई देने के बहाने फोन करूंगा और सरप्राइज देने के लिए
पैराशूट से सीधे उसके घर उतर जाऊँगा। ऐसे मौके पर, वह मेरी बात
नहीं टाल पाएगा, आखिर वो ‘’अतिथि देवो भव:’’ की परंपरा वाले जो ठहरे। देव रूपी अतिथि .... अतिथि रूपी देव के साथ महत्वकांक्षी
गुप्त समझौता करने से मना नहीं कर पाएंगे।‘’ मालिक ने सीना चौड़ा
करते हुए कहा।
‘’मान गए
मालिक, आप मौके का इंतजार कीजिए तब तक हम प्रतिशोध की तैयारी
का नाटक करते हैं। अपने लोगों का हौंसला बढ़ाते हैं।‘’ सिक्योरिटी
इंचार्ज ने सलाम ठोकते हुए कहा।
अब हमारा पड़ोसी
‘मौके’ का इंतजार कर रहा है .... आप भी कीजिए इंतज़ार
... पड़ोसी को ‘मौका’ मिलने का ....।
© सर्वाधिकार लेखकाधीन सुरक्षित हैं।
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