मैं कन्या .... लौट कर आई हूँ (कविता)
ए ज़माने देख ज़रा, मैं फिर लौट कर आई हूँ,
मालूम था न बदलोगे
तुम, फिर भी लौट कर आई हूँ।
करूंगी पूरे सपने
अपने, देखे थे जो जन्म-जन्मों
से,
जलाई, डुबोई, लटकाई गई थी अब
तक, अब क्या जुगत लगाओगे।।
करो तुम अपने ‘परम’ करम, चुनौती बन फिर लौट आई हूँ,
आग, पानी, रस्सी से हुई
दोस्ती, अब क्या नया खेल रचाओगे।
अब फिर पढ़ूंगी, खूब पढ़ूंगी .... और फिर बनूँगी माँ-बापू का
अभिमान,
करके आई हूँ वादा
रब-खुदा से, लौटूंगी तो विजयी नहीं तो
मत करना इंतज़ार।।
ऐ दादी-नानी, सास-ननद ... इस बार रण होगा तो सिर्फ पति’देव’ के साथ,
किया वरण स्वयं, पर छोड़ दिया मेरे ही वंशी रिश्तेदारों की रहमत
पर।
पति’देव’ कहलाते हैं
महादेव का अंश, महादेव बन भी अर्धनारीश्वर
रूप भूले,
मुझ बिन थे तुम अधूरे .. हो अधूरे और रहोगे अधूरे
.. संपूर्णता को समर्पण करो।।
© सुनील भुटानी
(यह कविता मेरा दूसरा काव्य रचना प्रयास है।)
No comments:
Post a Comment