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Sunday, 9 October 2016

परलोक में भ्रष्‍टाचार (कहानी)



परलोक में भ्रष्‍टाचार

      देवलोक में देवराज इन्द्र के दरबार में रहस्यमयी खामोशी छाई है। सभी देवतागण दरबार में उपस्थित हैं। देवलोक के इतिहास में ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं आई थी। दरबार में व्याप्त रहस्यमयी खामोशी के बीच, देवताओं के गुरू बृहस्पति देवराज इन्द्र की अनुमति से सभा की कार्यवाही प्रारंभ करते हुए कहते हैं कि देवताओं, जैसाकि हम सभी जानते हैं कि पृथ्वीलोक के प्राणी मनुष्य यमलोक की कार्य-प्रणाली पर सवाल उठा रहे हैं। उनके आरोप हैं कि यमलोक के यमदूत मनुष्यों की प्राणात्माओं को पृथ्वीलोक से यमलोक लाने में धांधली करते हैं। यमदूत धनी मनुष्यों से रिश्‍वत लेकर उनके स्थान पर गरीब मनुष्यों की प्राणात्माओं को यमलोक ले आते हैं और यमलोक के लेखाधिकारी चित्रगुप्त से उनके कर्मों एवम् जन्म-मृत्यु से संबंधित खातों में अपेक्षानुसार फेरबदल करवाते हैं। मनुष्यों के पाप एवं पुण्य कर्मों संबंधी खातों में हेराफेरी कर नरक की भागी मनुष्य-आत्माओं को स्वर्ग और स्वर्ग की भागी मनुष्य-आत्माओं को नरक भेजा जाता है। यमलोक की कार्य-प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव है। चूंकि यमलोक देवलोक के अधीन कार्य करता है, इसलिए मनुष्यों के इन आरोपों की जाँच के लिए एक समिति का गठन कर सच्चाई का पता लगाया जाना चाहिए।

      देवलोक के राजदरबार में मौजूद देवताओं ने मनुष्यों के इन आरोपों का एक स्वर में विरोध करते हुए कहा कि ये मनुष्य अपने को समझते क्या हैं। वे अपने सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक आदि कर्तव्यों का निवर्हन तो ठीक से करते नहीं, पाप अधिक और पुण्य कम करते हैं, सृष्टि रचयिता परमपिता ब्रह्मा द्वारा बनाए गए प्रकृति के नियमों की अवहेलना करते हैं और यमलोक की कार्य-प्रणाली पर प्रश्‍न उठाते हैं। इस विषय पर विवाद को बढ़ता देख देवराज इन्द्र ने इस संबंध में परमपिता ब्रह्मा जी की सहायता लेने का निर्णय किया। देवराज के नेतृत्व में सभी देवतागण ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और पूरा मामला उनके समक्ष प्रस्तुत किया। परमपिता ब्रह्मा ने इस मामले में देवराज को ऐसा निर्णय लेने के लिए कहा जिससे यमलोक एवं देवलोक की कार्य-प्रणाली की विश्‍वसनीयता और प्रतिष्ठा कायम रहे। राजदरबार में लौटकर देवराज इन्द्र ने बृहस्पतिदेव की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय जाँच समिति का गठन किया और तीन दिन में जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा।

      बृहस्पतिदेव ने जाँच कार्य तत्काल प्रारंभ करते हुए तीन दिन के अन्दर जाँच रिपोर्ट देवराज के समक्ष प्रस्तुत कर दी। इस जाँच रिपोर्ट पर चर्चा करने के लिए बुलाई गई विषेष सभा में जाँच समिति के अध्यक्ष बृहस्पतिदेव ने देवराज की अनुमति से जाँच रिपोर्ट का सार पढ़कर सुनाया। इस सार में बताया गया कि मनुष्यों द्वारा लगाए गए आरोप सही हैं। यह सब सुनकर राजदरबार में हलचल गई। बृहस्पतिदेव ने जाँच रिपोर्ट से एक मामले का उल्लेख किया। पृथ्वीलोक के एक मनुष्य सेठ धनीराम का अंतिम समय निकट आ गया था। यमलोक के अधिपति की आज्ञा से एक यमदूत सेठ धनीराम के प्राण-हरण के लिए पृथ्वीलोक पर पहुंचा। वह सेठ धनीराम के समक्ष प्रकट हुआ और उसे यमलोक चलने के लिए कहा। यमदूत को सामने देखकर सेठ के पसीने छूट गए। वह यमदूत के समक्ष गिड़गिड़ाकर कुछ और समय की मांग करने लगा। यमदूत ने कहा कि यह उसके अधिकार-क्षेत्र की बात नहीं है अतः उसे तत्काल यमलोक चलना होगा। सेठ धनीराम को एक युक्ति सुझी। सेठ ने यमदूत से कहा कि वह यमलोक चलने के लिए तैयार है परंतु आपको मेरा आतिथ्य स्वीकार करना होगा। हमारे यहां अतिथि को देव का दर्जा दिया जाता है और आप मेरे अतिथि हैं भले ही क्षण भर के लिए ही सही। बार-बार कहने पर यमदूत ने सेठ का आतिथ्य स्वीकार कर लिया। यमदूत को सोने-चांदी के बर्तनों में भिन्न-भिन्न प्रकार के पकवान और पेय परोसे गए। जलपान से निवृत्त होने के पश्चात सेठ ने हीरों की एक गुथ्थी यमदूत को उपहार-स्वरूप दी। यमदूत ने जब तक सेठ का आतिथ्य स्वीकार नहीं किया था तब तक वह यमलोक की मर्यादाओं, आचार-संहिता एवं कार्य-प्रणाली की दुहाई देते हुए किसी भी प्रकार की मदद नहीं कर पाने की बात कहता रहा परंतु आतिथ्य से निवृत्त होने के पश्चात सेठ के प्रति उसके मन में स्नेह जागृत हो गया। यमदूत ने सेठ से प्रसन्न होकर कहा कि वह उसे कुछ देना चाहता है। सेठ ने कहा ‘‘नहीं! नहीं! मैंने आपका सत्कार इसलिए नहीं किया था कि आप बाद में मुझे कुछ दें। परंतु यदि आप नहीं मान रहे हैं तो मुझे पृथ्वीलोक पर कुछ और समय बिताने का अवसर प्रदान करें। यमदूत को सेठ द्वारा अपनाई गई युक्ति समझ में आ गई थी, परंतु वह सेठ के आतिथ्य से उऋण भी होना चाहता था। इसी बीच, यमदूत की नज़र सेठ के नौकर पर गई जो सेठ की उम्र और सौष्ठव से लगभग मेल खाता था। यमदूत ने सेठ से कहा कि वह उसकी मदद कर सकता है बशर्ते उसे अपने नौकर का बलिदान करना होगा। सेठ इसके लिए तुरन्त तैयार हो गया। नौकर ने सेठ और यमदूत के बीच का वार्तालाप सुन लिया था। नौकर दौड़ता हुआ आया और यमदूत के पैरों में गिर पड़ा। नौकर बोला - ‘‘मालिक, मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं, बीवी तथा बूढ़े माता-पिता हैं और मैं परिवार में अकेला कमाने वाला हूँ। मुझपर रहम कीजिए, मुझ एक व्यक्ति से मेरे परिवार के आठ सदस्यों की जिंदगी जुड़ी है।‘’ नौकर की बात सुनकर सेठ बोला - ‘‘अरे रामू ! तू चिंता क्यों करता है। मैं तुझे बदले में इतना धन दूंगा कि तेरा परिवार आजीवन सम्पन्न जीवन व्यतीत करेगा। मैं तुम्हारा अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान और चंदन की लकड़ियों से करवाऊँगा।‘’ सेठ की बातें सुनकर नौकर की आँखों में चमक आ गई। वह सोचने लगा कि यदि मैं जिंदगी भर मेहनत करूँ तो भी अपने परिवार के सदस्यों को सम्पन्न जिंदगी का अहसास तक भी नहीं करवा सकता। मेरा शरीर चंदन की लकड़ियों में स्वाहा होगा, ऐसा तो केवल राजा-महाराजाओं के साथ ही होता है। परंतु जैसे ही उसे अपने जीवन के अंत का मंजर दिखाई दिया, उसकी आँखों की चमक खत्म हो गई। काफी सोच-विचार करने के बाद नौकर ने सेठ की बात मान ली। सेठ ने नौकर से कहा कि वह उसके परिवार को सम्पन्न जीवन जीने के लिए आवश्‍यक सभी वस्तुएं और नकदी शीघ्र ही भिजवा देगा। नौकर को सेठ पर पूरा विश्‍वास था क्योंकि वह उसके यहां पिछले 15 वर्षों से काम कर रहा था और इसके अलावा वह सेठ के लिए अपने प्राणों का बलिदान भी तो कर रहा था। यमदूत ने सेठ से कहा कि अब वह अपने नौकर के जीवनकाल का शेष जीवन जी सकता है, परंतु इसके लिए उसे हीरों की एक और गुथ्थी देनी होगी। सेठ ने शीघ्र ही एक और हीरों की गुथ्थी यमदूत को लाकर दे दी। यमदूत ने सेठ के स्थान पर नौकर के प्राणों का हरण किया और यमलोक में सीधे चित्रगुप्त के पास पहुंचा। यमदूत ने सेठ से ली गई दूसरी हीरों की गुथ्थी चित्रगुप्त को पकड़ाते हुए पूरी घटना कह सुनाई। यमलोक के लेखाधिकारी चित्रगुप्त ने नौकर और सेठ के जीवन-मृत्यु तथा पाप-पुण्य संबंधी खातों में आवश्‍यकतानुसार फेरबदल कर दिया। पृथ्वीलोक पर नौकर के परिवार का रो-रो कर बुरा हाल था, उन्हें अपने वर्तमान और भविष्य की चिंता सता रही थी। इस बीच, सेठ आया और नौकर के परिवार को दिलासा देते हुए बोला कि वह रामू का अंतिम-संस्कार करवाएगा और उन लोगों के भरण-पोषण के लिए भी जरूरी प्रबंध करेगा। सेठ ने रामू के पिता को दो हजार रूपए देते हुए कहा कि वह इन रूपयों से रामू का अंतिम-संस्कार करवाए और रामू की तेरहवीं के बाद रामू की पत्नी और बच्चों को उसके घर पर काम करने के लिए भेज दे जिसके बदले में वह उन्हें दो हजार रूपए प्रति माह वेतन देगा। सेठ की उदारता देखकर रामू के पिता सेठ के चरणों में गिरकर आभार व्यक्त करने लगे। वहां मौजूद लोग भी सेठ की उदारता का गुणगान करने लगे।

      बृहस्पतिदेव के मुख से इस घटना को सुनकर दरबार में सन्नाटा छा गया। बृहस्पतिदेव ने बताया कि जाँच रिपोर्ट में प्रस्ताव किया गया है कि दोषी यमदूतों को उनके घृणित कार्यों के लिए पृथ्वीलोक के अति गरीब परिवार में पैदा कर भेजा जाए, चित्रगुप्त को आजीवन-काल के लिए नरक में रखकर वह सभी यातनाएं दी जाएं जो नरक में रहने वाली अन्य दुरात्माओं को दी जाती है। चूंकि यमराज यमलोक का प्रमुख है और उसे इस प्रकार की घटनाओं की जानकारी होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अतः यमराज को यमलोक के प्रमुख के पद से हटाने का प्रस्ताव भी किया गया है। दरबार में उपस्थित देवताओं ने जाँच रिपोर्ट में किए गए इन प्रस्तावों का स्वागत तो किया परन्तु यह प्रश्‍न भी उठाया कि यदि चित्रगुप्त को नरक भेज दिया जाएगा और यमराज को यमलोक के प्रमुख के पद से हटा दिया जाएगा तो यमलोक की व्यवस्था किस प्रकार कार्य करेगी। बृहस्पतिदेव ने कहा कि इसका विकल्प भी जाँच रिपोर्ट में दिया गया है। पृथ्वीलोक में  निर्मित सुपर कंप्यूटर यमलोक की संपूर्ण व्यवस्था को संचालित करेगा। मनुष्य द्वारा तैयार की गई यह मशीन आज मनुष्य को ही पीछे छोड़ रही है। पृथ्वीलोक की सभी महत्वपूर्ण व्यस्थाएं इसी प्रकार के कंप्यूटरों द्वारा संचालित की जाती हैं। सृष्टि के रचयिता परमपिता ब्रह्मा जी द्वारा पृथ्वीलोक के प्राणियों के लिए बनाए गए नियमों और यमलोक की कार्य-प्रणाली को ध्यान में रखते हुए एक सॉफ्टवेयर तैयार करवाया जाएगा। सुपर कंप्यूटर में इस सॉफ्टवेयर के अंतर्गत पृथ्वीलोक के प्रत्येक प्राणी की एक फाइल होगी जिसमें प्रत्येक प्राणी के जीवन-मृत्यु का समय, पाप एवं पुण्य कर्मों का ब्योरा (जोकि प्रति क्षण अपडेट होता रहेगा), पिछले जन्मों का ब्योरा आदि होगा। यही सॉफ्टेवयर प्रत्येक प्राणी के पाप एवं पुण्यों का विश्‍लेषण कर अगले जन्म का निर्धारण करेगा। सुपर कंप्यूटर यमदूतों को निर्देश जारी करेगा कि किस प्राणी का अंतिम समय आ गया है और किस प्राणात्मा को नरक अथवा स्वर्ग में भेजना है, नरक में किस प्राणात्मा को कितनी यातनाएं देनी हैं और स्वर्ग में किस प्राणात्मा को कितनी सुविधाएं देनी हैं। यह कंप्यूटर यमदूतों द्वारा पृथ्वीलोक से लाई गई प्रत्येक प्राणात्मा की पहचान करेगा कि यह प्राणात्मा वहीं है जिसको लाने का निर्देश कंप्यूटर द्वारा दिया गया था। उल्लेखनीय है कि इसी प्रकार का एक-एक कंप्यूटर देवराज इन्द्र और परमपिता ब्रह्मा के कक्ष में भी लगाया जाएगा जोकि यमलोक के कंप्यूटर से नेटवर्किंग के माध्यम से जुड़ा रहेगा अर्थात् यमलोक के कंप्यूटर में उपलब्ध सभी आँकड़े देवराज और परमपिता के कंप्यूटर में उपलब्ध होंगे। इस प्रकार, यमलोक की व्यवस्थाओं एवं कार्य-प्रणाली पर दोहरी नज़र भी रखी जा सकेगी।
दरबार में उपस्थित देवताओं ने यमलोक में कंप्यूटर लगाए जाने का स्वागत किया। देवराज इन्द्र के आदेशानुसार, पृथ्वीलोक की अग्रणी कंप्यूटर हार्डवेयर कम्पनी से तीन सुपर कंप्यूटर और अग्रणी सॉफ्टवेयर कम्पनी से अपेक्षानुसार सॉफ्टवेयर तैयार करवाए गए। देवलोक एवं यमलोक से तीन देवताओं एवं तीन यमदूतों को अग्रणी कंप्यूटर प्रषिक्षण संस्थान से कंप्यूटर संचालन का प्रशिक्षण दिलाया गया। प्रशिक्षित देवताओं ने देवलोक में चित्रगुप्त की पुस्तिकाओं के सभी आँकड़े कंप्यूटरों में डाल दिए। एक भव्य समारोह में पृथ्वीलोक के रचयिता परमपिता ब्रह्मा ने यमलोक की कार्य-प्रणाली के कंप्यूटरीकरण का उद्घाटन किया। इस प्रकार, यमलोक में व्याप्त भ्रष्टाचार का अंत हुआ और मनुष्यों का यमलोक की कार्य-प्रणाली में पुनः दृढ़ विश्‍वास कायम हुआ।

(ध्‍यानाकर्षण : यह कहानी मेरी मूल रचना है। ) 


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