थॉयराइड : कारण और प्राकृतिक उपचार
थायराइड: थायराइड
वह महत्वपूर्ण अंत:स्रावी ग्रन्थि (Endrocrine
Gland) है
जो शरीर के रोजमर्रा या दैनिक कार्यकलापों को नियंत्रित करती है। यह रोग ज्यादातर
महिलाओं में पाया जाता है। इस रोग की शुरूआत या इस रोग का अधिक प्रभाव नवयौवन
(अर्थात् 13-15 वर्ष की आयु) के समय, गर्भावस्था के
दौरान, रजोनिवृत्ति के समय या
शारीरिक तनाव के समय होता है।
थायराइड के रोग
सामान्यत: निम्न प्रकार के होते हैं:-
1.
घेघा
(गलगंड)
(Goitre) : इसमें एक या एक से अधिक ग्रंथिका (नोडयूल) में
सूजन आ जाती है। यह सूजन गले पर उभर आती है। कभी कभी यह सूजन दिखाई नहीं देती परन्तु
रोगी महसूस करता है।
घेघा होने पर
एकाग्रता-शक्ति कमजोर हो जाती है। उदासी आ जाती है,
रोना आता है, चिड़चिड़ापन हो जाता है, मानसिक संतुलन खो जाता है और वजन कम हो जाता है।
2.
थायराइड
का बढ़ना (हाइपर थायराइड): इसमें थायराइड ग्रन्थि हारमोन ज्यादा बनने लगते हैं।
थायराइड बढ़ने पर – वजन कम हो
जाता है, जल्दी घबराहट होने लगती
है, कमजोरी महसूस होती है, गर्मी सहन नहीं होती, अधिक पसीना आने लगता है, कई बार अंगुलियों में कंपकंपी भी होने लगती है।
दिल की धड़कन बढ़ जाती है, बार-बार पेशाब
आता है, थकावट महसूस होती है, यादाश्त कमजोर होने लगती है, रक्तचाप (बी.पी.) बढ़ने लगता है, भूख अधिक लगने लगती है, माहवारी (पीरियड) में गड़बड़ी होने लगती है, बाल झड़ने लगते हैं।
3.
थायराइड
का सिकुड़ना (हाइपोथाइरोडिज्म): इसमें थायराइड ग्रन्थि हारमोन कम बनाने लगती है।
थायराइड के
सिकुड़ने पर –
वजन बढ़ने लगता है, सर्दी सहन नहीं
होती है, कब्ज रहती है, बाल बहुत ही रूखे-सूखे हो जाते हैं, कमर में दर्द होने लगता है, जोड़ों में अकड़न होने लगती है, नब्ज धीमी चलने लगती है, चेहरे पर सूजन आने लगती है।
थायराइड के
रोगियों के लिए आवश्यक रक्त जांच:
रक्त में थाइराइड
के दोनों हारमोन यानि टी3-ट्राईआयोडोथाईरोनीन और टी4-टेट्राआयोडोथाईरोनीन की
मात्रा का पता लगाने के लिए टी3 एवं टी4 टेस्ट करवाए जाते हैं। यदि दूसरे लक्षणों
के साथ हारमोन की मात्रा ज्यादा होती है तो इसे थायराइड का बढ़ा होना यानि
हाइपरथाइरोडिज्म कहा जाता है और यदि दूसरे लक्षणों के साथ हारमोन की मात्रा कम
होती है तो इसे थायराइड का सिकुड़ना यानि हाइपोथाइरोडिज्म कहा जाता है।
थायराइड रोग होने
के कारण:
1.
भोजन
में आयोडीन की कमी। यह उन लोगों में ज्यादा पाया जाता है जो केवल पका हुआ भोजन
करते हैं और प्राकृतिक भोजन यानि फल एवं सब्जियां आदि बिल्कुल नहीं लेते हैं।
प्राकृतिक भोजन से शरीर को आवश्यकतानुसार आयोडीन मिल जाता है। पकाने के दौरान
प्राकृतिक आयोडीन नष्ट हो जाता है।
2.
मानसिक
तनाव।
3.
भावनात्मक
(इमोश्नल) तनाव।
4.
वंशानुगत।
5.
गलत
आहार विहार।
थायराइड रोग के
उपचार के उपाय:
1.
नारियल
पानी, पत्तागोभी, गाजर, चकुन्दर, अनानास, संतरा, सेब, अंगूर आदि के रस
का उपलब्धता और इच्छानुसार सेवन करें।
2.
पत्तेदार
हरी सब्जियों, फलों, सलाद, अंकुरित खाद्य
पदार्थों का खूब सेवन करें।
3.
मैदा, चीनी, तली-भुनी चीजों, चाय, काफी, शराब, डिब्बाबंद खाद्य
पदार्थों का सेवन बहुत ही नुकसानदेय होता है, इसलिए इनका सेवन
बिल्कुल भी नहीं करें।
4.
एक
कप पालक के रस में एक बड़ा चम्मच शहद, एक चौथाई छोटा
चम्मच जीरे का चूर्ण मिलाकर रोज रात को सोने से पहले लेने पर बहुत लाभ होता है।
5.
एक
गिलास पानी में दो चम्मच साबुत धनिया रात को भिगोकर रखें और सुबह उसे मसलकर उबाल
लें। एक-चौथाई पानी रहने पर खाली पेट पी लें। यह बहुत ही फायदेमंद और प्राकृतिक
रूप से थायराइड को नियंत्रित करता है।
6.
प्रतिदिन
नमक डालकर गर्म पानी के गर्रारे करने से बहुत फायदा होता है।
7.
गले
पर गीली पट्टी 10-15 मिनट तक रखने से भी लाभ होता है।
8.
शरीर
को ज्यादा थकने नहीं दें।
9.
शरीर
को अधिक से अधिक आराम दें।
10. पूरी और गहरी नींद
लें। कम से कम 7-8 घंटे की नींद अवश्य लें।
11. मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक तनाव से दूर रहें।
12. थायराइड की अंत:स्रावी ग्रंथियों (एण्डोक्राइन ग्लैंड्स) (जो हमारे शरीर के दैनिक कार्यकलापों को नियंत्रित करते हैं) को ठीक करने के लिए योगमुद्रासन एवं प्राणायाम बहुत-बहुत लाभकारी होते हैं। शवासन, योगनिद्रासन, पवनमुक्तासन, मत्स्यासन, सुप्तवज्रासन बहुत ही लाभकारी योग क्रियाएं हैं। उज्जायी एवं भ्रामरी प्राणायाम और जालंधर बंध लगाना भी बहुत लाभकारी होता है।
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