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Saturday 29 October 2016

वैश्विक मंच ‘फेसबुक’ की अजब-गजब दुनिया



वैश्विक मंच फेसबुक की अजब-गजब दुनिया

फेसबुक की दुनिया के रचयिता श्री मार्क जकरबर्ग ने सन् 2004 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अपने दोस्‍तों को एक-दूसरे से जोड़े रखने के लिए बनाई गई वेबसाइट के बारे में कभी यह नहीं सोचा होगा कि एक दिन यह फेसबुक पूरे विश्‍व के लोगों को एक-दूसरे से जोड़ देगी। मनुष्‍य इस पृथ्‍वीलोक पर अपनी विचारशीलता और जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण सर्वश्रेष्‍ठ प्राणी माना जाता है। प्रत्‍येक विचारशील एवं जिज्ञासु व्‍यक्ति को एक ऐसे मंच की आवश्‍यकता होती है जहां पर वह अपने विचार प्रकट कर सके और अपने विचारों पर लोगों की प्रतिक्रिया प्राप्‍त कर सके तथा देश-दुनिया की भाषा, संस्‍कृति एवं सभ्‍यता आदि से जुड़ी बातों को जान सके। फेसबुक ने एक ऐसा वैश्विक मंच दुनिया के लोगों को प्रदान किया है जिसके माध्‍यम से विश्‍व के अनेक देशों, प्रदेशों, शहरों और गांवों के लोग अपनी-अपनी विचारधारा और प्रवृत्ति के लोगों से जुड़ रहे हैं और समान उद्देश्‍यों को पूरा करने के लिए प्रयासरत् हैं।

शुरूआती दिनों में फेसबुक विश्‍व के बुद्धिजीवी एवं संभ्रांत लोगों का मंच माना जाता था। लेकिन अब विश्‍व का हर वह विचारशील एवं जिज्ञासु व्‍यक्ति इस मंच से जुड़ा हुआ है और वैश्विक समाज के विविध पहलुओं पर अपने विचारों को दूसरों के समक्ष प्रस्‍तुत कर रहा है। फेसबुक ने देश-दुनियां की सरहदों को पार करके घर-घर में अपनी जगह बना ली है। फेसबुक विश्‍व के लगभग 70 करोड़ लोगों की जीवनशैली का एक अंग बन गया है। विश्‍व में अलग-अलग भाषा, धर्म, संस्‍कृति, विचाराधारा, प्रवृत्ति आदि के लोग हैं और इन सभी लोगों के लिए फेसबुक पर बहुत कुछ है। साहित्‍य एवं कला, सामाजिक, धार्मिक, व्‍यावसायिक, विज्ञान, शिक्षा, आदि अनेक क्षेत्रों से जुड़े लोग संगठित होकर विचारों का परस्‍पर आदान-प्रदान कर रहे हैं। इस वैश्विक मंच फेसबुक को सजीव बनाए रखने के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों डॉलर खर्च किए जा रहे हैं जिनमें प्रमुख खर्च फेसबुक के करोड़ों प्रयोक्‍ताओं द्वारा नियमित रूप से अपलोड की जाने वाली सामग्रियों को व्‍यवस्थित एवं सुरक्षित रखने के लिए उच्‍च क्षमता वाले कंप्‍यूटर सर्वरों, इन कंप्‍यूटर सर्वरों तथा इनके डाटा सेंटर आदि के रखरखाव और इन्‍हें बिजली की नियमित आपूर्ति, प्रबंधन एवं प्रशासनिक कार्यों पर होता है। फेसबुक एक महीने में औसतन 10 लाख डॉलर के बिजली बिल का भुगतान कर रहा है। हम सभी फेसबुक प्रयोक्‍ताओं को फेसबुक के रचयिता श्री जकरबर्ग के प्रति आभार प्रकट करना चाहिए जिन्‍होंने विश्‍व के अनेक धर्मों, भाषाओं, संस्‍कृतियों एवं विचारधाराओं वाले लोगों को एक ऐसा वैश्विक मंच प्रदान किया है जो वैश्विक कल्‍याण से जुड़े विविध पहलुओं पर एकजुट होकर विचार-मंथन करते हुए व्‍यावहारिक रूप से कार्य करने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। 

विश्‍व में एक ओर जहां अनेक लोग फेसबुक की उपयोगिता की शान में कसीदे पढ़ते हैं वहीं दूसरी ओर ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो वैचारिक एवं बौद्धिक स्‍वतंत्रता को बनाए रखने में मुख्‍य भूमिका अदा कर रहे फेसबुक का अपने-अपने स्‍वार्थों की वज़ह से विरोध करते हैं। यह सही है कि फेसबुक की दुनिया में अनेक ऐसे लोग हैं जो देश, जाति-धर्म, भाषा, संस्‍कृति आदि अनेक संवेदनशील मुद्दों पर प्रतिकूल विचार/टिप्‍पणी प्रकट करते हैं। लेकिन हमें यह भी स्‍वीकार करना होगा कि ऐसे कुछ लोगों को फेसबुक से संजीदगी से जुड़े लोगों का समर्थन बिल्‍कुल भी नहीं है। जिस तरह इस दुनिया में अच्‍छे और बुरे लोग हैं उसी तरह फेसबुक की दुनिया में भी अच्‍छे और बुरे लोग हैं। प्रत्‍येक व्‍यक्ति को अपने विवेक से निर्णय लेने का अधिकार है। वास्‍तविक दुनिया की तरह फेसबुक की दुनिया में भी लोग अपने जैसे विचारों एवं प्रवृत्ति के लोगों को खोज ही लेते हैं। हमारी खोज का दायरा वास्‍तविक दुनिया की भांति केवल आस-पड़ोस, गांव, शहर या देश तक सीमित न रहकर पूरा विश्‍व समुदाय हो जाता है। यह व्‍यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह फेसबुक की दुनिया में किस प्रकार लोगों से संबं‍ध स्‍थापित करना चाहता है और संबंधों को कहां तक सीमित रखना चाहता है। किसी मित्र की अप्रिय टिप्‍पणी एवं हरकत पर क्षण भर में संबंध-विच्‍छेद का विकल्‍प मौजूद होता है।    कई लोग अपनी संयमित भाषा एवं आदर्श विचारों के द्वारा फेसबुक मित्रों से व्‍यक्तिगत संपर्क एवं आत्‍मीय संबंध भी स्‍थापित कर लेते हैं। ऐसे मधुर संबंध एक-दूसरे के सामाजिक, शैक्षिक, व्‍यावसायिक, सांस्‍कृतिक उद्देश्‍यों को पूरा करने में सहायक होते हैं। 

फेसबुक पर अनेक महत्‍वपूर्ण सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्‍थाएं अपने-अपने लक्ष्‍यों एवं उद्देश्‍यों को पूरा करने के लिए मौजूद हैं। अनेक सामाजिक, सांस्‍कृतिक, धार्मिक, साहित्यिक एवं जन-कल्‍याणकारी आदि संस्‍थाएं हैं जिनसे जुड़कर लोग समाज, संस्‍कृति, धर्म, साहित्‍य एवं जनकल्‍याण के प्रति अपने उत्‍तरदायित्‍वों को कुछ हद तक पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं। उदाहरणस्‍वरूप, फेसबुक पर ‘’हिंदी हैं हम’’ नामक मंच भारत की राष्‍ट्रभाषा एवं राजभाषा हिंदी के विकास एवं प्रचार-प्रसार के लिए प्रयासरत् है और विश्‍वभर में भारत की राष्‍ट्रभाषा एवं राजभाषा हिंदी के प्रति विशेष भाव रखने वाले हिंदीप्रेमी लोग इस मंच पर इकट्ठा हो रहे हैं और अपने-अपने विचारों का परस्‍पर आदान-प्रदान कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, फेसबुक पर ‘’सत्‍यमेव जयते्’’ नामक मंच भारत में बेटियों के लिए सामाजिक, आर्थिक एवं कानूनी संरक्षण सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयासरत् है। इस प्रकार, फेसबुक पर अनेक ऐसे मंच हैं जो देशहित एवं जनहित के लिए वैचारिक एवं व्‍यावहारिक रूप से संघर्षरत् हैं। विश्‍व का व्‍यवसाय जगत भी फेसबुक का दोहन कर रहा है। अनेक देशी-विदेशी व्‍यापारिक संगठन अपने उत्‍पादों के बारे में विस्‍तार से जानकारी देने वाले पेज़ फेसबुक पर सांझा कर रहे हैं। इन उत्‍पादों को मिलने वाले प्रतिसाद के मद्देनज़र अपनी व्‍यापारिक रणनीति तय करते हैं। इसके अलावा, देश-विदेश के अनेक व्‍याव‍सायिक प्रतिष्‍ठान फेसबुक पर विज्ञापन देकर वयावसायिक एवं आर्थिक लाभ प्राप्‍त कर रहे हैं। गौरतलब है कि वैश्विक मंच फेसबुक को सफलतापूर्वक चलाने पर खर्च होने वाली धनराशि का अधिकांश हिस्‍सा इन्‍हीं विज्ञापनों के माध्‍यम से प्राप्‍त होता है। हम अपनी पसंद-नापसंद, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य एवं जीवनपयोगी उत्‍पादों आदि से जुड़े जो भी डाटा फेसबुक पर शेयर करते हैं, वे फेसबुक द्वारा अपने उन्‍नत कंप्‍यूटर सर्वरों में सुरक्षित रखे जाते हैं और ऐसे उपयोगी डाटा को फेसबुक द्वारा क्षेत्र विशेष से संबंधित व्‍यावसायिक प्रतिष्‍ठानों से सांझा कर धनार्जन किया जाता है। फेसबुक की कमाई का प्रमुख ज़रिया विज्ञापन ही हैं। इस फेसबुक दुनिया के रचयिता श्री जकरबर्ग की कंपनी को पिछले साल लगभग 3.7 अरब डॉलर की कमाई हुई थी जिसके इस वर्ष 5 अरब डॉलर से अधिक रहने की प्रबल संभावना है। अब, फेसबुक न्‍यूयार्क (अमेरिका) के शेयर बाजार नेस्‍डेक' में लिस्‍ट हो चुका है, इसके साथ ही यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि भविष्‍य में फेसबुक प्रयोक्‍ताओं को मासिक/वार्षिक शुल्‍क अदा करना होगा। परन्‍तु कंपनी ने फिलहाल ऐसी किसी संभावना से इंकार किया है। वैश्विक मंच फेसबुक से वैश्विक समाज एवं व्‍यावसायिक जगत दोनों लाभान्वित हो रहे हैं। अत: वैश्विक मंच फेसबुक कामधेनु गाय के समान है जिसके दोहन से संपूर्ण वैश्चिक समाज, व्‍यवसाय जगत आदि नियमित रूप से तृप्‍त हो सकते हैं।

निष्‍कर्षत: यह कहा जा सकता है कि वैश्विक मंच फेसबुक की दुनिया इसकी विविधताओं की वज़ह से अजब-गजब है। वैश्विक मंच फेसबुक विचारशील एवं जिज्ञासु लोगों की पिपासा को शान्‍त करने का एक महत्‍वपूर्ण एवं उपयोगी साधन है। संसार की प्रत्‍येक वस्‍तु के उपयोग के प्रति संयम एवं अनुशासन की आवश्‍यकता होती है, उसी प्रकार इस वैश्विक मंच फेसबुक का संयमित एवं अनुशासनपूर्वक उपयोग करके वैश्विक समाज एवं राष्‍ट्रहित में महत्‍वपूर्ण योगदान प्रदान किया जा सकता है।     


© सुनील भुटानी,

Wednesday 19 October 2016

स्‍वच्‍छ भारत अभियान : कुछ विचारणीय बिन्‍दु


स्‍वच्‍छ भारत अभियान : कुछ विचारणीय बिन्‍दु



1.    प्रत्‍येक वाहन बनाने वाली कम्‍पनी को यह कहा जाए कि वे अपने बनाए वाहनों (स्‍कूटर, कार, बस, जीप आदि) में छोटा-बड़ा, जैसा भी संभव हो, कूड़ेदान बनाएं ताकि इन वाहनों के ड्राईवर और सवारियां अपना कूड़ा इसमें डाल सकें और उसके बाद रास्‍ते में किसी कूड़ेदान या गंतव्‍य के किसी कूड़ेदान में डाल सकें।

2.    सभी मुख्‍य सड़कों/राजमार्ग आदि पर प्रत्‍येक एक किलोमीटर पर एक कूड़ेदान और प्रत्‍येक तीन किलोमीटर के बाद एक शौचालय हो। यह कार्य जिला/राज्‍य/राष्‍ट्रीय/अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर की प्रोफेशनल एजेंसी के माध्‍यम से करवाया जा सकता है। इनके लिए संबंधित राज्‍य सरकारों द्वारा जमीन उपलब्‍ध करवाई जाए और प्रोफेशनल एजेंसी इन स्‍थानों का कमर्शल इस्‍तेमाल करके अपनी शुरूआती लागत और उसके बाद के रखरखाव के खर्चों को पूरा करें। इससे सरकारों पर आर्थिक बोझ भी नहीं पड़ेगा और लोगों की यह शिकायत भी दूर होगी कि वे तो कूड़ा कूड़ेदान में डालना चाहते हैं लेकिन कूड़ेदान/शौचालय ही नहीं मिलते हैं।

3.    प्रत्‍येक आर.डब्‍ल्‍यू.ए./सोसायटी/मोहल्‍ला समिति आदि के स्‍तर पर एक स्‍वच्‍छता समिति का गठन किया जाए जोकि अपने एरिया/इलाके में स्‍वच्‍छता की ओर विशेष ध्‍यान दें। इस समिति को स्‍थानीय प्रशासन द्वारा यथावश्‍यक सहयोग भी प्रदान किया जाए।

4.    सड़कों/गलियों में खानपान का सामान बनाने/बेचने वाले प्रत्‍येक व्‍यक्ति के लिए कूड़ेदान रखना अनिवार्य होना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर स्‍थानीय प्रशासन द्वारा जुर्माना लगाया जाना चाहिए। इन व्‍यक्तियों से प्रतिदिन कूड़ा लेने की व्‍यवस्‍था उसी प्रकार की जानी चाहिए जैसे कि घरों से कूड़ा लेने के लिए गाडि़यां लगाई गई हैं।

5.    रेलवे स्‍टेशनों/बस स्‍टैंडों पर कूड़दानों/शौचालयों की अधिक मात्रा में विशेष व्‍यवस्‍था होनी चाहिए। इन व्‍यवस्‍थाओं के बावजूद कूड़ा करने वालों पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए।  
6.    सामान्‍यत: देखा जाता है कि सरकारी भवनों (विशेषत: कार्यालयों/स्‍कूलों आदि) की चारदीवारी के नजदीक बहुत अधिक कूड़े के ढेर लग जाते हैं क्‍योंकि कूड़ा डालने वालों को रोकने वाला कोई व्‍यक्ति विशेष नहीं होता है। ऐसे में, संबंधित सरकारी भवन के प्रशासनिक प्रधान द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना  चाहिए कि उनके भवन की चारदीवारी के पास लोगों द्वारा कूड़ा न डाला जाए।

मैं कन्‍या .... लौट कर आई हूँ (कविता)

मैं कन्‍या .... लौट कर आई हूँ (कविता)



ए ज़माने देख ज़रा, मैं फिर लौट कर आई हूँ,
मालूम था न बदलोगे तुम, फिर भी लौट कर आई हूँ।
करूंगी पूरे सपने अपने, देखे थे जो जन्‍म-जन्‍मों से,
जलाई, डुबोई, लटकाई गई थी अब तक, अब क्‍या जुगत लगाओगे।।

करो तुम अपने परम करम, चुनौती बन फिर लौट आई हूँ,
आग, पानी, रस्‍सी से हुई दोस्‍ती, अब क्‍या नया खेल रचाओगे।
अब फिर पढ़ूंगी, खूब पढ़ूंगी .... और फिर बनूँगी माँ-बापू का अभिमान,
करके आई हूँ वादा रब-खुदा से, लौटूंगी तो विजयी नहीं तो मत करना इंतज़ार।।

ऐ दादी-नानी, सास-ननद ... इस बार रण होगा तो सिर्फ पतिदेव के साथ,
किया वरण स्‍वयं, पर छोड़ दिया मेरे ही वंशी रिश्‍तेदारों की रहमत पर।
पतिदेव कहलाते हैं महादेव का अंश, महादेव बन भी अर्धनारीश्‍वर रूप भूले,
मुझ बिन थे तुम अधूरे .. हो अधूरे और रहोगे अधूरे .. संपूर्णता को समर्पण करो।। 



© सुनील भुटानी


(यह कविता मेरा दूसरा काव्‍य रचना प्रयास है।)