गांधीवाद का भविष्य
अंतर्राष्ट्रीय स्तर
पर शांति के प्रतीक श्री मोहन दास करम चन्द गांधी अर्थात् हमारे ‘महात्मा गांधी’, ‘बापू, ‘साबरमती के संत’ ने भारत सहित विश्व के अनेक देशों के लोगों को जिंदगी जीने का तरीका सिखाया है।
गांधीवाद अर्थात् ‘गांधी-दर्शन’ और ‘गांधी-विचारधारा’ विश्व के श्रेष्ठतम् दर्शनों एवं
विचाराधाराओं में से एक है। गांधीवाद ने ‘मार्क्सवाद’,
‘समाजवाद’, ‘भौतिकवाद’ ‘पूंजीवाद’ आदि अनेक दर्शनों एवं
विचारधाराओं पर अपनी उत्कृष्टता सिद्ध की है।
गांधी जी ने किस प्रकार अपने जीवन के पलों को सार्थक रूप में
व्यतीत किया, अनेक विषम परिस्थितियों में अपने गूढ़ विचारों के माध्यम से समाधान निकाले तथा भारतीय
एवं विश्व जनमानस को अपनी ओर आकर्षित किया है। गांधी जी का अनुकरणीय जीवन एवं विचार
शैली ही सम्पूर्ण गांधीवाद है। हालांकि गांधी जी के जीवन एवं विचार शैली के अनेक श्रेष्ठ
पहलु हैं, लेकिन हम यहाँ निम्नलिखित
चुनिंदा श्रेष्ठतम् पहलुओं की चर्चा करेंगे जोकि गांधी जी के प्रतिरूप में स्थापित
हो गए हैं:-
1. सत्यः सत्य अर्थात् हम जैसा देखते, सुनते और महसूस करते हैं और उसे उसी रूप में प्रकट करते हैं, यही सत्य है। गांधी जी ने अपना
सम्पूर्ण जीवन सत्य की खोज में समर्पित कर दिया था। मनुष्य गलतियों का पुतला है,
लेकिन गलतियों से सीख प्राप्त
कर भविष्य में गलती को नहीं दोहराना ही श्रेष्ठतम प्रवृत्ति है। गांधी जी ने सत्य
को लेकर अपने ही जीवन पर अनेक प्रयोग किए और अपनी आत्मकथा को ‘सत्य के प्रयोग’ नाम देकर सत्य की महत्ता को स्थापित करने का विशिष्ट कार्य किया है।
2. अहिंसाः यह शब्द गांधी जी के नाम के पर्याय के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। भारत सहित
विश्व के जिस किसी हिस्से में भी आंदोलनों की बात होती है तो सर्वप्रथम गांधी जी द्वारा
प्रशस्त किए गए अहिंसा मार्ग को याद किया जाता है। नेल्सन मंडेला जैसे व्यक्तित्व
गांधी जी के अहिंसा रूपी मंत्र से प्रभावित हुए और अफ्रीका में राजनीतिक व्यवस्था को
बदलकर रख दिया। गांधी जी के अहिंसक आंदोलनों ने भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से आज़ादी
प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
3. शाकाहारः गांधी जी शाकाहारी भोजन के प्रबल समर्थक रहे हैं। वह हिन्दू गुजराती परिवार में
पैदा हुए थे और जैन धर्म का प्रभाव भी उनके जीवन पर देखा जा सकता था। उनके घर-परिवार
में मांसाहार वर्जित था। हालांकि गांधी जी ने अपने मित्र शेख मेहताब से दुष्प्रभावित
होकर जीवन में एक बार माँस का सेवन किया था परन्तु इसके लिए उन्हें इतनी आत्मग्लानि
हुई थी कि उन्होंने जीवन पर्यंत माँस भक्षण करने से तौबा कर ली थी। उच्चतर शिक्षा के
लिए लंदन जाने से पहले उनकी माता पुतली बाई और चाचा बेचार जी स्वामी ने गांधी जी से
वचन लिया था कि वे माँसाहार और मद्यपान से दूर रहेंगे। गांधी जी ने पूरी शिद्दत से
अपना वचन निभाया, भले ही इसके लिए उन्हें कई बार भूखा भी रहना पड़ता था।
4. ब्रह्मचर्यः गांधी जी के लिए ब्रह्मचर्य का अर्थ ‘‘इंद्रियों के अंतर्गत आने वाले
विचारों, शब्द तथा कर्म पर नियंत्रण
रखना’’ था। गांधी जी का मानना था कि ब्रह्मचर्य को अपना कर
भगवान के करीब पहुंचा जा सकता है और स्वयं को पहचानने में मदद मिलती है। हालांकि एक
घटना ने उन्हें ब्रह्मचर्य की ओर मुड़ने के लिए काफी हद तक प्रभावित किया था,
लेकिन आध्यात्मिकता एवं व्यावहारिक
शुद्धता के प्रति आकर्षण ने भी उन्हें ब्रह्मचर्य की ओर उन्मुख किया था। वह घटना यह
थी कि उनके पिता बीमार थे और गांधी जी अपने पिता की सेवा में प्रवृत्त थे, लेकिन इसी दौरान गांधी जी के
चाचा गांधी जी की मदद के लिए घर आए। एक दिन गांधी जी के चाचा आराम करने के लिए शयन
कक्ष में गए और शारीरिक इच्छाओं के वषीभूत होकर अपनी पत्नी से प्रेम करने लगे। इसी
बीच, ख़बर आई कि गांधी जी
के पिता का देहांत हो गया है। गांधी जी इसके लिए कहीं न कहीं अपने को जिम्मेदार माना
और अपराध बोध से ग्रस्त हो गए। इस घटना ने भी उन्हें 36 वर्ष की आयु में ब्रह्मचर्य की ओर उन्मुख होने में
महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
5. सादगी: भारतीय संस्कृति में सादगी का एक विशेष महत्व रहा है। गांधी जी ने भारतीय संस्कृति
के इस पहलु को सुदृढ़ता प्रदान की है। वह स्वयं साधारण कपड़े पहनते थे, अनावश्यक खर्च नहीं करते थे
और यहां तक कि वह अपने कपड़े भी स्वयं धोते थे। उन्होंने उच्चतर शिक्षा भले ही विदेश
में प्राप्त की हो और कई वर्षों तक विदेशों में रहे हों, लेकिन उनका उन विदेशी देशों की तड़क-भड़क वाली संस्कृति
का प्रभाव बिल्कुल नहीं पड़ा था। वह अपने को तुच्छ (साधारण) मात्र समझते थे और उनकी
इस तुच्छता ने उन्हें श्री मोहन दास करमचंद गांधी से ‘महात्मा गांधी’ बना दिया। वह सप्ताह
में एक दिन मौन धारण कर आत्मचिंतन करते थे। एक विदेशी लेखक जॉन रस्किन की पुस्तक ‘अन्टू दिस लास्ट‘ ने महात्मा गांधी जी
को सादगी की ओर प्रवृत्त करने में विशेष भूमिका निभाई थी।
6. विश्वास: गांधी जी एक हिन्दू परिवार में पैदा हुए। आध्यात्मिक दृष्टि से उनका व्यक्तित्व
हिन्दू धर्म से प्रभावित रहा है। वह सभी धर्मों का सम्मान करते है लेकिन उन्होंने धर्मांतरण
के प्रयासों को अस्वीकार किया था। श्रीमद्भगवतगीता गांधी जी के प्रिय आध्यात्मिक ग्रंथों
में से एक रही है जिसे पढ़ने
के बाद वह असीम शान्ति अनुभव करते थे। वह छुआछूत में विश्वास नहीं रखते थे और उन्होंने
अछूत समझे जाने वाले लोगों को ‘हरिजन’ (अर्थात् भगवान श्री कृष्ण के बनाए इंसान) नाम दिया था।
गांधीवाद केवल भारतीय सभ्यता
एवं संस्कृति की धरोहर ही नहीं है अपितु विश्व के अनेक देशों की सभ्यता एवं संस्कृति
ने भी गांधीवाद को अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए संजोया है। गांधीवाद के देश-विदेश
में प्रचार-प्रसार के लिए देश-विदेश में गांधी जी और उनके दर्शन अर्थात् गांधीवाद पर
अनेक फिल्में/डॉक्यूमेंटरी फिल्में/नाटक बनाए गए हैं और अनेक किताबें लिखी गई हैं,
जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:-
- ‘‘महात्मा: लाइफ ऑफ गांधी 1869-1948’’ - विट्ठलभाई झवेरी (अंग्रेज़ी डाक्यूमेंटरी फिल्म; वर्ष 1968)
- ‘‘गांधी’’ - बेन किंग्सले (अंग्रेज़ी फिल्म; 1982)
- ‘‘द मेकिंग ऑफ द महात्मा’’- (अंग्रेज़ी डाक्यूमेंटरी फिल्म; 1996)
- ‘‘मैंने गांधी को नहीं मारा’’ - जाहनु बरूआ (हिंदी फिल्म; 2005)
- ‘‘लगे रहो मुन्ना भाई’’ - राजकुमार हिरानी (हिंदी फिल्म; 2006)
- ‘‘गांधी माइ फॉदर’’ - (अंग्रेज़ी फिल्म; 2007)
- ‘‘गांधी विरूद्ध गांधी’’ - (मराठी नाटक; 1995)
- ‘‘मी नाथुराम गोडसे बोलतो’’ - (मराठी नाटक; 1989)
- ‘‘गांधी अम्बेडकर’’ - (हिंदी नाटक; 1997)
- ‘‘महात्मा: लाइफ ऑफ मोहनदास करमचंद गांधी’’- डी.जी. तेंदुलकर (8 खंडों में प्रकाशित अंग्रेज़ी कृति)
- ‘‘महात्मा गांधी’’ - प्यारे लाल एवं सुषीला नायर (10 खंडों में प्रकाशित अंग्रेज़ी कृति)
- ‘‘ग्रेट सोल: महात्मा गांधी एंड हिज़ स्ट्रगल विद इंडिया’’ - जोसफ लेलीवेल्ड (अंग्रेज़ी में प्रकाशित आत्मकथा; 2010)
- ‘‘वेल्कम बैक गांधी’’ (फिल्म; 2014)
गांधी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व
के प्रतिरूप ‘गांधीवाद’ को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता
मिली हुई है। परिणामस्वरूप, गांधी जी को प्रख्यात अंतर्राष्ट्रीय अंग्रेज़ी पत्रिका ‘‘टाइम’’ ने 1930 में ‘‘मैन ऑफ द ईयर’’
से नवाज़ा था। इसी पत्रिका ने
2011 में विश्व के सर्वोच्च
25 सार्वकालिक राजनीतिज्ञों
की सूची में गांधी जी को स्थान दिया था। गांधी जी को 1937 से 1948 के बीच पांच बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया
था परन्तु कभी पुरस्कार दिया नहीं गया जिसके लिए नोबेल कमेटी ने सार्वजनिक तौर पर खेद
भी व्यक्त किया था।
गांधीवाद की अलख जगाए रखने और
उन्हें सदैव स्मरणीय बनाए रखने के लिए भारतीय नोटों पर महात्मा गांधी जी की फोटो लगाई
गई है। गांधी जी के जन्मदिवस 2 अक्तूबर को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किए जाने के साथ ही मद्यपान निषेध दिवस के
रूप में भी मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2007 में गांधी जयंती 2 अक्तूबर को ‘‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस’’ के रूप में घोषित कर गांधी एवं गांधीवाद को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता एवं प्रसिद्धी
प्रदान की है।
विश्व के सर्वोच्च चुनिंदा व्यक्तित्वों
में एक भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दर्शन अर्थात् गांधीवाद के प्रति देश-विदेश के लोगों का ध्यान निरंतर आकर्षित किए जाने के प्रयोजन से भारत संघ एवं अनेक
राज्य सरकारों ने राष्ट्रहित एवं जनहित की अनेक परियोजनाओं/योजनाओं/संस्थाओं/पुरस्कारों
आदि के नाम महात्मा गांधी जी के नाम पर रखे गए हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:-
- गांधी शांति पुरस्कार (अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना
- महात्मा गांधी प्रवासी सुरक्षा योजना
- महात्मा गांधी बुनकर बीमा योजना
- महात्मा गांधी ग्रामीण बस्ती योजना
भारतीय जनमानस में पिछले कुछ
वर्षों में गांधी जी और गांधीवाद के प्रति उदासीनता देखी गई है। देश के लोग गांधी जी
को तस्वीरों तक और उनके विचारों को किताबों तक सीमित रखे हुए दिखाई देते रहे हैं। जो
लोग गांधीवादी विचारों से निकटता से जुड़े हुए है, वे कहीं तो साधुवाद के पात्र बनते हैं और कहीं उपहास
के पात्र भी बनते हैं। कई तथाकथित राजनेताओं ने गांधी जी का विरोध करके अपनी राजनीतिक
पहचान बनाई है, वहीं दूसरी ओर अन्ना हजारे जैसे गांधीवादी लोगों ने गांधीवाद को जीवित रखने का
गंभीर प्रयास भी किया है। देश में कई संगठन एवं व्यक्ति ऐसे भी हैं जो गांधी जी के
हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमा-मंडन करते हैं और उनका मंदिर तक बनाए जाने का असफल
प्रयास कर रहे हैं। देश में गांधी एवं गांधीवाद को लेकर वैचारिक द्वंद्व हो रहा है।
कोई राजनीतिक दल एवं परिवार गांधी जी को अपनी धरोहर मानता है और दूसरे राजनीतिक दल
अथवा व्यक्ति द्वारा गांधी जी के नाम का इस्तेमाल किए जाने को पाखंड ठहराता है। क्या
गांधी जी किसी राजनीतिक दल अथवा परिवार के मुखौटे हो सकते हैं? कदापि नहीं। गांधी जी और गांधीवाद
के सिद्धांतों पर देश एवं विश्व के प्रत्येक व्यक्ति, संस्था एवं समाज का बराबर हक़ है क्योंकि गांधी जी इस
संकीर्ण मानसिकता से बहुत ऊपर थे इसीलिए वह महापुरूष थे।
गांधी जी एक सार्वलौकिक व्यक्तित्व
हैं और उनके अनुकरणीय दर्शन अर्थात् गांधीवाद ने भारतीय जनमानस के साथ-साथ विश्वभर
के लोगों को अभिभूत किया है। गांधीवाद की अखिल भारतीय एवं वैश्विक परिप्रेक्ष्य में
एक महत्वपूर्ण भूमिका है। राष्ट्रीय एवं वैश्विक घटनाएं/परिस्थितियां मानव समाज के
समक्ष चुनौतियां पेश कर रही हैं। आज विश्व समुदाय हिंसा के विभिन्न रूपों से त्रस्त
है। अति सुरक्षित समझे जाने वाले देशों एवं शहरों में भी हिंसक घटनाएं हो रही हैं।
अमेरिका के न्यूयार्क शहर में हुई 9/11 जैसी आतंकी घटना ने जहां विश्व समुदाय को हिलाकर कर दिया था,
वहीं दूसरी ओर मुम्बई में हुए
26/11 जैसे आतंकी हमले ने
भारत देश की सुरक्षा को चुनौती देने का काम किया था। पश्चिमी देशों में स्कूलों के
बच्चे निरंतर हिंसक होते जा रहे हैं और अपने स्कूल बैग में हथियार लेकर जाते हैं और
अपने सहपाठियों की हत्या कर रहे हैं। आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन अपनी भयानक आतंकवादी
घटनाओं के माध्यम से विश्व समुदाय को आतंकित कर अपनी अंगुलियों नचाने की इच्छा रखते
हैं। आतंकी संगठन बच्चों को भी आतंकवाद के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं और उन्हें मानव
बम के तौर पर भी इस्तेमाल कर रहे हैं। ये उदाहरण तो विश्व समुदाय के सामने पेश सुरक्षा
संबंधी चुनौतियों की बानगी भर है। कई मामलों में विश्व समुदाय ने एकजुट होकर ऐसी घटनाओं
के प्रति सख्त प्रतिक्रिया जाहिर की है और कई देशों के आतंकवादी अड्डों को नष्ट करने
का प्रयास किया है। मौजूदा समय में, हिंसा के जवाब में प्रति-हिंसा हो रही है। वैश्विक शांति भंग
हो रही है, हर तरफ भय और अविश्वास
का माहौल है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर विश्वास करने को तैयार नहीं है। आज विश्व
में अगर ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण गांधीवाद के मूल तत्वों
शांति एवं अहिंसा के प्रति लोगों का विमुख होना है। मौजूदा समय में, गांधीवाद के सिद्धांतों का विश्व
समुदाय द्वारा अनुकरण किए जाने की आवश्यकता है। विश्व समुदाय में अलग-अलग धर्मों
के लोगों के बीच परस्पर सौहार्द बनाए रखने के लिए गांधीवाद के प्रचार-प्रसार को एक
त्वरित अंतर्राष्ट्रीय मिशन के रूप में चलाए जाने की आवश्यकता है।
पिछले दिनों देश की राजनीति में
बहुत बड़ा बदलाव आया है। गांधी जी को अपनी पार्टी और परिवार की धरोहर समझने वाली पार्टी
2014 के आम चुनावों में बुरी
तरह से हार गई। नई सरकार बनाने वाली पार्टी को गांधी जी के हत्यारों की संस्था से जोड़कर
देखा पेश किया जाता रहा था, इसलिए सामान्यजन में यह आशंका पैदा होने लगी थी कि अब गांधी जी और गांधीवाद को
निरन्तर मिल रहा सरकारी संरक्षण एक रणनीति के तहत धीरे-धीरे समाप्त होता जाएगा। इस
आशंका के केन्द्र में कुछ धार्मिक/सांस्कृतिक संगठनों के सदस्यों के वे बयान थे जिसमें
गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन किया गया था और उनका मंदिर तक बनाने
की बात कही गई थी। लेकिन, मौजूदा नई सरकार के मुखिया माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों की आकांक्षाओं
को गलत साबित करते हुए गांधी जी को पिछली सरकारों की अपेक्षा बहुत अधिक महत्व देते
हुए गांधी जी के विदेश प्रवास से भारत लौटने के शताब्दी वर्ष 2015 को भारतीय प्रवासी दिवस कार्यक्रम
से जोड़कर एक अनूठी मिसाल पेश की। इसके अलावा, माननीय मोदी जी ने वर्ष 2014 के स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर लालकिले की प्राचीर
से घोषणा की है कि महात्मा गांधी जी साफ-सफाई के प्रबल समर्थक थे इसलिए देशवासियों
को उनके जन्म के हीरक (75वीं) जयंती वर्ष 2019 तक देश को साफ-सुथरा बना दिया जाए। माननीय मोदी जी की देश के नाम इस अपील ने एक
सामाजिक क्रांति का रूप ले लिया। गली-मोहल्लों, गाँव-कस्बों, नगरों-महानगरों में आम एवं खास लोगों ने हाथों में झाड़ू
उठा ली और देश को साफ-सुथरा बनाने के अभियान की शुरूआत कर दी है। माननीय मोदी जी जब
विदेशों में गए तो उन्होंने वहां गांधी जी की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण किया तो गांधी
जी और गांधीवाद की ओर देश-विदेश के लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ। देश-विदेश के मीडिया
ने इन खबरों को प्रमुखता से प्रकाशितत किया जोकि आशंकित परिस्थितियों के बीच बहुत ही
महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक था। मौजूदा सरकार के मुखिया गांधी जी और गांधीवाद को वैश्विक
स्तर पर प्रेरणा-स्रोत के रूप में स्थापित करना चाहते हैं और वैश्विक आतंकवाद जैसी
समस्याओं का गांधीवादी तरीके से समाधान खोजने की दिशा में प्रयास करने के लिए विश्व
समुदाय को आवाह्न करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
वर्श 2015 के गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि
माननीय बराक ओबामा ने गांधी जी की समाधि ‘राजघाट' पर आगंतुक पुस्तिका में दर्ज
किया है कि ‘‘भारत में गांधी जिंदा हैं’’
और सिरीफोर्ट सभागार में आयोजित
विशिष्ट कार्यक्रम में कहा कि ‘‘मार्टिन लूथर (पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति) गांधी जी के विचारों से प्रभावित रहे
हैं’’। भारत में आने वाले प्रत्येक
बड़े राजनेता गांधी जी की समाधि पर जाकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करना नहीं भूलते
हैं, यह विश्व में गांधीवाद
की पराकाष्ठा का ही परिणाम है। गांधी जी एवं गांधीवाद ने भारत के विश्व पटल पर एक
शांतिप्रिय एवं अहिंसा में विश्वास रखने वाले देश के रूप में स्थापित किया है। विश्व
समुदाय भारत की इस बात पर विश्वास करता है कि भारत परमाणु हथियार अपनी सुरक्षा के
लिए तैयार कर रहा है, किसी अन्य राष्ट्र को हानि पहुंचाने के लिए नहीं क्योंकि भारत गांधीवादी पंरपराओं
का निवर्हन करने वाला देश है।
निष्कर्षत: गांधीवाद विश्व
के किसी भी वाद से सर्वोपरि है। ‘सत्य’, ‘अहिंसा’,
‘शाकाहार’, ‘ब्रह्मचर्य’, ‘सादगी’ एवं ‘विश्वास’ आदि गांधीवाद की समेकित आत्मा हैं। ‘गांधीवाद’ एक विश्व धरोहर है जोकि
प्रत्येक व्यक्ति के लिए समान रूप से ग्राह्य है। इसी सुग्राह्यता का ही परिणाम है
कि गांधी जी और गांधीवाद को लेकर देश-विदेश में अनेक फिल्में एवं वृत्तचित्र बनाए तथा
पुस्तकें आदि लिखी गई हैं। गांधीवाद को निरन्तर जीवंत रखने के लिए केंद्रीय एवं राज्य
सरकारों की अनेक योजनाओं के नाम गांधी जी के नाम पर रखे गए हैं ताकि मौजूदा तथा भावी
पीढ़िया उनसे प्रेरणा प्राप्त करती रहें। गांधीवाद के और अधिक वैश्विक प्रचार-प्रसार
से विश्व में मौजूदा आतंकवाद की भयावह स्थिति पर काबू पाने की रणनीति तैयार की जा
सकती है। गांधीवाद को आत्मसात कर जीवन व्यतीत करने वाले मार्टिन लूथर, नेल्सन मंडेला, अन्ना हजारे आदि ने विश्व प्रसिद्धी
प्राप्त की है और गांधीवादी परंपराओं को आगे बढ़ाने का काम किया है। पिछले कुछ वर्षों
में गांधीवाद के अस्तित्व को चुनौती देने का असफल प्रयास किया गया लेकिन पिछले कुछ
समय में बदली राजनीतिक परिस्थितियों ने गांधीवाद रूपी शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार
किया है। सर्वोच्च राजनेता से लेकर सामान्य राजनीतिक कार्यकर्ता और विशिष्ट तथा सामान्यजन
सभी गांधीवाद का गुणगान कर रहे हैं। इसी मौजूदा स्थिति को देखते हुए विश्व के सबसे
शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को यह कहना पड़ता है कि ‘‘भारत की धरती पर गांधी जिंदा
हैं’’। निःसंदेह रूप से जब
हम स्वयं अपनी उत्कृष्ट विभूतियों तथा परंपराओं का सम्मान एवं निर्वहन करेंगे तभी
विश्व के अन्य राजनेता तथा सामान्यजन भी इनके समक्ष आदर स्वरूप अपना शीश झुकाएंगे।
अतः गांधीवाद का भविष्य निश्चित रूप से बहुत ही उज्जवल है।
© सर्वाधिकार लेखकाधीन सुरक्षित हैं।
(ध्यानाकर्षण: यह लेख मेरी मूल
रचना है। इस लेख को अन्यत्र प्रकाशित किए जाने से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है।)
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