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Wednesday 25 March 2020

PRACTICAL TRANSLATION EXERCISE - 14 (25-03-2020)




Fallout of US withdrawal from Paris Accord

The Paris Accord brings all nations into a common cause for undertaking ambitious efforts to combat climate change through enhanced support and help offered to the developing countries for doing so. This first-ever universal and legally binding global climate deal has been adopted by 195 countries in December 2015. The global climate effort witnesses this convention as a new course and aims to strengthen the global response to the threat of climate change by keeping a global temperature rise well below 2 degrees Celsius above pre-industrial level.



The Paris Accord also suggests that the developed countries have to be accountable and provide the developing countries with financial and technological aid in combating the climate change as the current rise in greenhouse gases is due to them.



The recent agreement had reached the 21st session of the Conference of the Parties (COP 21) of the United Nations Framework Convention on Climate Change. This is a historic accord negotiated in 195 countries including the United States for limiting the global temperature increase to more than 2 degree Celsius above pre-industrial levels.

Seeing the withdrawal of US from this accord from a climate standpoint, it will have a 
significant potential impact because the United States accounts for approximately 20% of the world’s greenhouse gas emission. The additional carbon dioxide would increase the speed at which ice sheets are melting further raising the sea levels higher and quicker. This continued increase in global temperature will also likely prompt weather extremes, both hot and cold.



(सुनील भुटानी)
लेखक-अनुवादक-संपादक-प्रशिक्षक 
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2 comments:

  1. अभ्यास-14
    [ पेरिस ऐकोर्ड से यू.एस. का विगमन]

    पेरिस ऐकोर्ड के ज़रिए जलवायु परिवर्तन जैसे संवेदनशील मुद्दे पर विश्वभर को देशों को साथ लाने का प्रयास किया गया है। ताकि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं से आपसी सहयोग द्वारा निपटा जा सके।और विकासशील देशों को सहायता प्रदान की जा सकें।सर्वप्रथम दिसंबर 2015 में 195 देशों के द्वारा इस प्रकार का विश्वव्यापी वैधानिक समझौता किया गया था ताकि जलवायु परिवर्तन की समस्याओं का समाधान निकाला जा सकें।इस प्रकार के विश्वव्यापी सहयोग ने जलवायु परिवर्तन के प्रति दुनिया का नज़रिया बदला और इसके माध्यम से वैश्विक स्तर पर यह लक्ष्य रखा गया कि वैश्विक तापमान के बढ़ते स्तर को प्री-इंडस्ट्रीयल स्तर से 2 डिग्री सेलशियस तक कम बनाए रखने का प्रयास किया जाएगा।

    यह पेरिस एकोर्ड/समझौता यह भी समझाता है कि विकसित देशों को इस संदर्भ में जवाबदेह होना होगा ।उनकी वजह से ग्रीन हाऊस गैसों के स्तर में जो वृद्धि हुई है , और इससे उत्पन्न जलवायु संबंधी समस्याओं के समाधान हेतु इन देशों को विकासशील देशों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान करनी होगी।
    यह समझौता अपने 21 वें सत्र में पहुंच चुका है।जलवायु परिवर्तन समझौते से जुड़ी यू.एस की कोनफ्रेंस आॅफ पार्टिज़ (सी.ओ.पी-21) ।यह एक ऐतिहासिक समझौता है।जिसमें 195 देशों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट् (अमेरिका )भी जलवायु परिवर्तन से निपटने का भरसक प्रयास कर रहा है। ताकि वैश्विक तापमान को प्री-इंडस्र्टरीयल स्तर से 2 डिग्री कम रखा जा सकें।
    यू.एस. का स्वयं को इस समझौते से अलग करने का फैसला देखते हुए लगता है कि जलवायु पर इसका काफी गंभीर प्रभाव देखने को मिल सकता है।चूंकि संयुक्त राष्ट् स्वयं ही विश्व की ग्रीन हाऊस गैसों के लगभग 20% भाग के लिए जवाबदेह है ।
    बढ़ते कार्बन डाई आक्साईड की वज़ह से हिम पट्टियों का पिघलना और भी तीव्र हो जाएगा जिससे समुद्र-स्तर में भी तेजी से वृद्धि हो सकती है।इससे वैश्विक तापमान में भी लगातार वृद्धि होगी।जिससे मौसम चाहे का चाहे गर्म हो या सर्द उसका नितान्त गंभीर रूप हमें देखने को मिल सकता है।

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  2. पैरिस समझौते से अमेरिका के बाहर होने का नतीज़ा
    पैरिस समझौते ने जलवायु परिवर्तन का सामना करने संबंधी संयुक्‍त कार्य के लिए महत्‍वकांक्षी प्रयास हेतु सभी राष्‍ट्रों को एक मंच पर ला दिया है जिसमें विकासशील देशों को ऐसा करने के लिए अधिक समर्थन और सहायता ऑफर की गई है। पहली बार वैश्विक तथा कानूनी रूप से बाध्‍यकारी इस विश्‍व जलवायु समझौते को दिसंबर 2015 में 195 देशों द्वारा अपनाया गया है। इस सम्‍मेलन में वैश्विक जलवायु प्रयास एक नई शुरूआत के रूप में दिखाई दिया था जिसमें वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्‍तर से 2 डिग्री सेल्सियस नीचे रखकर जलवायु परिवर्तन के खतरे पर वैश्विक प्रतिक्रिया को मज़बूती प्रदान करने का लक्ष्‍य था।

    पैरिस समझौता यह भी सुझाव देता है कि विकसित देशों को जवाबदेह होना होगा और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए वित्‍तीय और प्रौद्योगिक सहायता प्रदान करनी होगी क्‍योंकि ग्रीन हाऊस गैंसों में मौजूदा बढ़ोतरी उन्‍हीं की वज़ह से है।

    हाल ही का समझौता जलवायु परिवर्तन पर संयुक्‍त राष्‍ट्र रूपरेखा सम्‍मेलन के पक्षकार-सम्‍मेलन (सीओपी 21) के 21वें सत्र तक पहुंच गया था। यह एक ऐतिहासिक समझौता है जिसपर वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्‍तरों से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक तक सीमित रखने के लिए अमेरिका सहित 195 देशों से बातचीत की गई थी।
    जलवायु दृष्टिकोण के इस समझौते से अमेरिका के बाहर होने का महत्‍वपूर्ण संभावित प्रभाव पड़ेगा क्‍योंकि विश्‍व के ग्रीनहाऊस गैस उत्‍सर्जन में अमेरिका की हिस्‍सेदारी लगभग 20 प्रतिशत है। अतिरिक्‍त कार्बनडाइऑक्‍साइड से बर्फ की परतें तेज़ी से पिघल रही हैं जिससे समुद्रतल का स्‍तर तेज़ी से बढ़ रहा है। वैश्विक तापमान में इस लगातार वृद्धि से मौसम के तेज़ी से गरम और ठंडा दोनों होने की भी आशंका है।

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