इलैक्ट्रोनिक एवं सोशल मीडिया के मनोवैज्ञानिक प्रभाव
(‘कोरोना’ के परिप्रेक्ष्य में विशेष प्रस्तुति)
वर्तमान में भारत
देश ‘महान’ इलैक्ट्रोनिक एवं
‘बेलगाम’ सोशल मीडिया के
दौर से गुज़र रहा है। ‘स्मार्ट’ देश के ‘बेहद स्मार्ट’ लोगों के पास एक-से-एक महंगे-सस्ते स्मार्ट टेलीविज़न और मोबाइल फोन
हैं। हमारी बहुमूल्य अखियाँ इन दो ‘स्मार्ट’, ‘सुंदर’, ‘आकर्षक’ और ‘सेक्सी’ उपकरणों को
बार-बार, लगातार एकटक देखते
रहने की आदी हो गई हैं। हमारे माइंड (दिमाग) की प्रोग्रामिंग में ये दोनों उपकरण
अपना वर्चस्व स्थापित कर चुके हैं। इलैक्ट्रोनिक मीडिया में हिंदी, क्षेत्रीय भाषाओं
और अंग्रेज़ी के अनगिनत न्यूज़ चैनल हैं। इन्हीं चैनलों के साथ-साथ अनेक अन्य
वेब-आधारित न्यूज़ पोर्टल मौजूद हैं। आजकल वेब-आधारित न्यूज़ पोर्टलों के
साथ-साथ वेब-आधारित न्यूज़ चैनल भी धमाल मचा रहे हैं। जहाँ तक सोशल मीडिया के स्वरूप
की बात है, सोशल मीडिया के
विभिन्न मंचों (फेसबुक, व्ह्टसअप, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि) पर रजिस्टर्ड करोड़ों उपयोक्ताओं में से लाखों
उपयोक्ता सोशल मीडिया के ‘स्वयंभू’ रिपोर्टर हैं जो पुष्ट-अपुष्ट (कंफर्म-नॉन कंफर्म) ख़बरें परोसते रहते
हैं।
आज भारत में इलैक्ट्रोनिक मीडिया के मेनस्ट्रीम
(मुख्य) टी.वी. न्यूज़ चैनल कभी न खत्म होने वाली भारतीय ‘ओलंपिक’ दौड़ (टीआरपी) में
दौड़े चले जा रहे हैं। कभी कोई एक चैनल पहले स्थान पर दौड़ रहा होता है तो कभी
कोई दूसरा चैनल पहले स्थान पर दौड़ रहा होता है ... दौड़ रहा होता है ... दौड़
रहा होता है। इस अंतहीन ‘ओलंपिक’ दौड़ के हम लाखों-करोड़ों दर्शक दौड़ के खत्म होने की वर्षों से प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन न यह दौड़
खत्म हो रही है और न ऐसे दर्शक शांति से सो पा रहे हैं और न शांति से जीवन-यापन
कर पा रहे हैं। उनके दिलो-दिमाग में ‘ओलंपिक’ का विशाल स्टेडियम (इलैक्ट्रोनिक न्यूज़
चैनलों की दुनिया) और इनमें दौड़ते एक-से-एक ‘मज़बूत’, ‘आकर्षक’, ‘मनोरंजक’ धावक (टी.वी. न्यूज़
चैनल) छाये रहते हैं। इन धावकों को निरंतर दौड़ना है, अपनी प्रतिभाओं का
निरंतर प्रदर्शन करना है क्योंकि उनके प्रायोजक रूपी धन-कुबेर उनपर नोटों की
वर्षा करते रहते हैं। आइए, अब गागर में सागर भरते
हैं। हमें टी.वी./मोबाइल आधारित इलैक्ट्रोनिक मीडिया के न्यूज़ चैनलों को
बार-बार लगातार बदल-बदल कर न्यूज़ के अलग-अलग स्वादों का रसास्वादन करने से
बचना चाहिए। एक ही तरह की न्यूज़ को बार-बार देखने से बचना चाहिए। उदाहरण के तौर
पर, मुझे याद आता है जब मुंबई में 26/11 का आतंकवादी हमला और दिल्ली में अन्ना
आंदोलन हुआ था उस समय ये न्यूज़ चैनल बार-बार लगातार एक ही तरह की रिकार्डिड/लाइव
न्यूज़ दिखा रहे थे। दर्शक भी उत्सुकतावश इन न्यूज़ चैनलों से ‘फेविकोल के जोड़ की तरह’ चिपके हुए थे जिनका
दर्शकों पर नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ रहा था। एक समय में लोगों में भय
और असुरक्षा की भावना पैदा हो रही थी तो दूसरे समय में ऐसा लग रहा था कि देश में
दूसरा स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हो गया है और जो इस स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा
नहीं बनेगा उसका नाम उस स्वर्णिम काल के इतिहास में काले अक्षरों से लिखा जाएगा।
देश-विदेश से अनेक लोग भावुक होकर अपनी लाखों-करोड़ों की नौकरियां छोड़कर आंदोलन
में कूद गए थे। इलैक्ट्रोनिक/विजुअल मीडिया का इंसानी दिमाग पर बहुत गहरा और लंबे
समय तक प्रभाव रहता है। भावनात्मक रूप से कमज़ोर व्यक्ति कुछ समाचारों या उनकी
प्रस्तुति के तरीके से इस इतने ज्यादा प्रभावित हो जाते हैं कि उनकी सोच-समझ
बहुत ज्यादा नकारात्मक/सकारात्मक रूप से प्रभावित होने लगती है। आजकल तो देखा
जा रहा है कि दर्शकों के न्यूज़ देखने और उसे समझने का तरीका इसपर निर्भर करने
लगा है कि वे कौन-सा न्यूज़ चैनल देख रहे हैं। देश में जब तक न्यूज़ दिखाई जाती
थीं तब तक दर्शक स्वतंत्र रूप से उसका मंथन/विश्लेषण करते थे। लेकिन, जब से न्यूज़ के साथ-साथ न्यूज़ पेश करने वाले के व्यूज़ (विश्लेषण)
भी दिखाये जाने लगे हैं तब से दर्शक न्यूज़ चैनल विशेष की विचारधारा के अनुरूप
सोचने और व्यवहार करने लगे हैं। हमें समझना होगा कि ‘निष्पक्ष’ पत्रकारिता संस्थानों से पत्रकारिता के गुण सीखकर आने वाले प्रशिक्षु
पत्रकारों/रिपोर्टरों को अपने नियोक्ता चैनल की ‘नीति’ के अनुरूप कार्य करना होता है। जब यही प्रशिक्षु अनुभवी और वरिष्ठ
पत्रकारों की श्रेणी में आते हैं तो मीडिया जगत के गुणा-भाग को समझ चुके होते हैं
और उसके अनुरूप पत्रकारिता ‘धर्म’
निभाते हैं।
वर्तमान ‘कोरोना संक्रमण काल’ में ये 24X7 न्यूज़ चैनल बार-बार हज़ार बार इस
वायरस के राष्ट्रीय-वैश्विक स्तर पर मानव-हानि सहित अनेक प्रभावों पर न्यूज़
दिखाएंगे, इस वायरस की चपेट में आने से बचने और चपेट में आ
जाने के बाद क्या करें इसके बारे में बतायेंगे। 25 मार्च 2020 से 21 दिनों की
राष्ट्रीय तालाबंदी (लॉक-डाउन) के समय में इन न्यूज़ चैनलों की ख़बरें और अधिक
महत्वपूर्ण और उपयोगी हो जाती हैं। लेकिन, जब हम इस वायरस
की भयावहता, इससे बचाव के उपायों और इसकी चपेट में आने पर की
जाने वाली आगे की कार्रवाई से परिचित हो चुके हैं, सरकारी
दिशा-निर्देशों से परिचित हो चुके हैं तो इन न्यूज़ चैनलों को लगातार देखते रहने
की जरूरत नहीं है। कई लोग बार-बार चैनल बदलकर देखते हैं कि हमारे देश में इस वायरस
से पीडि़त लोगों की संख्या कितनी हो गई और इनमें से कितने लोगों की मौत हो गई।
यदि मौत हो गई तो वो किस शहर/गांव में था। वो हमसे दूर किसी शहर में था तो शुक्र
है और हमारे ही शहर या आसपास के इलाके में था तो मन-मस्तिष्क भयानक भय की चपेट
में आने लगता है जिससे उसके शरीर पर उसके न चाहते हुए भी नकारात्मक प्रभाव पड़ने
लगते हैं और वो अपनी इम्यूनिटी को कमज़ोर कर लेता है। यदि हम सरकारी
दिशानिर्देशों का पालन करके 21 दिनों तक घर पर रहने वाले हैं तो फिर घबराने और
चिंता करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। हम एक दिन में सुबह-दोपहर-शाम-रात के
लिए समाचार देखने का समय निर्धारित कर सकते हैं और बाक़ी समय में अपने अन्य कार्य
और मनोरंजन/ज्ञान-वर्धन करने वाले चैनल देख सकते हैं। स्वयं पुस्तकें/पत्रिकाएं
पढ़ सकते हैं, अपने बच्चों को उनके पाठ्यक्रम या सामान्य
ज्ञान की पुस्तकें पढ़ा सकते हैं। हम वर्षों से अपने लिए,
अपने कुछ ख़ास कामों को करने के लिए समय की तलाश कर रहे थे और आज जब मज़बूरी में
सही वह समय मिलकर रहा है तो इस बेशकीमती समय का फ़ायदा उठा लीजिए।
जहां तक सोशल मीडिया
के विभिन्न मंचों (फेसबुक, व्ह्टसअप, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि) पर एक्टिव रहने का संबंध
है, हमें हमारे विश्वसनीय/प्रोफेशनल सोशल मीडिया मित्रों
द्वारा की जाने वाली रिपोर्टिंग पर ही विश्वास करना चाहिए। हम सोशल मीडिया के
उपयोक्ताओं को अपने स्मार्ट टी.वी. और मोबाइल फोन की तरह स्मार्ट बनना होगा और
सही-गलत एवं झूठ-सच में अंतर करके ही कोई पोस्ट डालनी होगी,
लाइक करनी होगी या शेयर करनी होगी। यदि हमें किसी सोशल मीडिया न्यूज़ की तथ्यात्मकता
पर संदेह हो तो उस न्यूज़ के स्रोत तक पहुंचकर सच्चाई कर पता लगाना चाहिए और
उसके बाद ही उसपर विश्वास करना चाहिए तथा प्रतिक्रिया (लाइक, कमेंट या शेयर) देनी चाहिए। आजकल, ‘कोरोना वायरस संक्रमण’ से संबंधित लाखों-करोड़ों
पोस्ट सोशल मीडिया में ‘वायरस’ की तरह
विचरण कर रही हैं जिनमें बचाव, इलाज और परिणामों के बारे में
अपुष्ट जानकारियां दी गई हैं। यहां पर भी हमें अपनी तार्किक बुद्धि का प्रयोग
करना होगा और अपनी बुद्धिमता के अनुसार ही उसपर प्रतिक्रिया देनी होगी। हमें
सरकारी/आधिकारिक संस्थाओं एवं व्यक्तियों द्वारा डाली जाने वाली पोस्ट पर ही
सबसे ज्यादा विश्वास करना चाहिए और अनुपालन करना चाहिए।
माननीय
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के निम्न संदेश को आपके समक्ष पुन: प्रस्तुत करते
हुए, मैं देश-विश्व के प्रत्येक नागरिक और इन
नागरिकों के प्राणों की रक्षा एवं सेवा में जुटे देश-विदेश के सभी कर्मठ, महान एवं ईश्वर के फरिश्तों के स्वास्थ्य और दीर्धायु जीवन की कामना
करता हूँ ... जय हिंद।
को = कोई
रो = रोड पर
ना = ना निकले
[जनहित में 26-03-2020 को रचित मूल लेख]
© सुनील भुटानी
अनुवादक-लेखक-संपादक-प्रशिक्षक
Blog: http://rudrakshao.blogspot.com (बहुआयामी ज्ञान मंच)
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(2) भारत सरकार के कार्यालयों में राजभाषा अधिकारियों/अनुवादकों का मंच
(3) Right to
Information (RTI) - सूचना का अधिकार
बहुत अच्छा और अवसर के उपयुक्त आलेख है।
ReplyDeleteअत्यंत प्रभावित, शिक्षाप्रद और प्रेरन्नादायक लेख प्रस्तुत किया गया है। बधाई हो।
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