English Version:
India signed the Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination against Women on 30 June 1980 and ratified it on 9 July 1993. After that India was expected to submit its report to the Committee on Elimination of Discrimination against Women (CEDAW). The first report was submitted in 1998. The combined fourth and fifth periodic reports were submitted in 2012. The Committee, in its concluding observations on this report in the year 2014, in para 39, urged India to speedily enact legislation to require compulsory registration of all marriages and simultaneously requested to consider to withdraw its declaration to Article 16 (2) of the Convention.
Article 16 of the Convention pertains to “Equality in marriage and family relations”. The Committee has expressed its concern in para 40 about the co-existence of multiple legal systems with regard to marriage and family relations in India which apply to the different religious groups and which results in the deep and persistent discrimination against women.
The National Commission of Women had offered a concrete solution to a number of problems arising out of non-registration of marriages by drafting a Compulsory Registration of Marriages Bill, 2005 seeking amendment to the Act of 1886.
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Hindi Translation:
भारत ने महिलाओं के विरूद्ध सभी प्रकार के विभेद के उन्मूलन
पर कन्वेंशन पर 30 जून 1980 को हस्ताक्षर किए थे और 9 जुलाई 1993 को इसकी
अभिपुष्टि की थी। उसके बाद, भारत से यह उम्मीद की गई थी कि वह भारत
महिलाओं के विरूद्ध विभेद उन्मूलन समिति
(सी.ई.डी.ए.डब्ल्यू.) को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा। प्रथम रिपोर्ट 1998 में प्रस्तुत
की गई थी। चौथीं और पाँचवीं संयुक्त आवधिक रिपोर्टें 2012 में प्रस्तुत की गई
थीं। समिति ने वर्ष 2014 में इस रिपोर्ट के पैरा 39 में अपनी समापन टिप्पणियों में
भारत से अनुरोध किया था कि सभी विवाह के अनिवार्य पंजीकरण की अपेक्षा करने वाले कानून
पर तेज़ी से कार्य करे और इसके साथ ही यह अनुरोध भी किया था कि कन्वेंशन के अनुच्छेद
16 (2) में की गई अपनी घोषणा को वापिस लेने पर विचार करे।
कन्वेंशन का अनुच्छेद 16 ‘’विवाह और कुटुम्ब संबंधों में समता’’ के बारे में है। समिति ने भारत में विवाह और कुटुम्ब संबंधों
से संबंधित कई कानूनी प्रणालियों के सह-अस्तित्व संबंधी पैरा 40 में अपनी चिंता व्यक्त
की थी जोकि विभिन्न धार्मिक समूहों पर लागू होता है और जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं
के विरूद्ध घोर और लगातार विभेद होता है।
राष्ट्रीय महिला आयोग ने 1886 के अधिनियम में संशोधन की मांग
करते हुए विवाह अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण विधेयक, 2005 का प्रारूप तैयार कर विवाहों
के रजिस्ट्रीकरण नहीं होने के कारण पेश आने वाली अनेक समस्याओं के ठोस समाधान का
प्रस्ताव प्रस्तुत किया था।
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(सुनील भुटानी)
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