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Thursday 6 February 2020

पुरी (ओडिशा) में ‘ज्ञान-गंगा’ में डुबकी


पुरी (ओडिशा) में ज्ञान-गंगा में डुबकी

       राष्‍ट्रीय उत्‍पादकता परिषद्, भारत (वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन) द्वारा भगवान जगननाथ की नगरी पुरी (ओडिशा) में 27-31 जनवरी 2020 के दौरान ‘’एडवांस कोर्स ऑन आरटीआई एक्‍ट, 2005 एंड मॉडर्न मेनेजमेंट प्रैक्टिसिस’’ विषय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम रूपी ज्ञान-गंगा प्रवाहित की गई। मुझे इस ज्ञान-गंगा में डुबकी लगाने के साथ-साथ भारतीय संस्‍कृति के विभिन्‍न रंग देखने का भी सुअवसर प्राप्‍त हुआ। ज्ञान-गंगा में डुबकी लगाने वालों में देश के विभिन्‍न प्रदेशों के अधिकारीगण मौजूद थे। ज्ञान-गंगा की अमृत बूँदों रसास्‍वादन करवाने वाले प्रशिक्षकगण अपने-अपने क्षेत्रों के माहिर प्रशिक्षक थे जिन्‍होंने अपनी-अपनी विशेष शैलियों के माध्‍यम से गूढ़ विषयों को बहुत ही सहजता से हमारे सामने रखा। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रतिभागियों ने एक ओर जहाँ ज़हन (दिमाग) में अपनी अमिट छाप छोड़ी, वहीं दूसरी ओर ज्ञान-गंगा को हमारे बीच लाने का दायित्‍व निभाने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम के संयोजक श्री अशोक कुमार जी और विशेष प्रशिक्षक डा. सोहन सिंह चंदेल, मनोवैज्ञानिक ने अपने-अपने ज्ञान तथा अभिव्‍यक्ति-शैली से हृदयावृंद में विशेष स्‍थान बनाया। प्रशिक्षण कार्यक्रम बहुत ही ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी रहा जिसका लाभ हम कार्यालयी कार्यों के कुशल निष्‍पादन में अनवरत् करते रहेंगे।
      
       राष्‍ट्रीय उत्‍पादकता परिषद् एक ओर जहाँ सरकारी एवं गैर-सरकारी अधिकारियों को प्रशिक्षित करने का काम कर रहा है वहीं दूसरी ओर विभिन्‍न प्रदेशों/संस्‍कृतियों के लोगों को एक मंच पर लाकर विचारों के परस्‍पर आदान-प्रदान का पुनीत कार्य भी कर रहा है। इस महत्‍वपूर्ण संस्‍था के सुनियोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रशिक्षित होने के साथ-साथ पुरी और भुवनेश्‍वर में भगवान जगन्‍नाथ मंदिर, लिंगराज महादेव मंदिर, कोणार्क सूर्य मंदिर के दर्शन का सौभाग्‍य भी प्राप्‍त हुआ और इन दर्शनों के माध्‍यम से भारत की विशाल पुरातन संस्‍कृति एवं सभ्‍यताओं को जानने का भी अवसर मिला। पूरे प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों के परस्‍पर संवाद से कई नई-नई बातें जानने का सुअवसर प्राप्‍त हुआ।

       मैं जब कभी भी प्रशिक्षण प्राप्‍त करने अथवा प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों में जाता हूँ तो एक ही बात सोचता हूँ कि भारत सरकार के कार्यालयों के अधिकारियों/कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की सफलता प्रशिक्षक और प्रशिक्षणार्थियों के बीच संवाद की भाषा पर बहुत ज्‍यादा निर्भर करती है। यदि मैं प्रशिक्षक के तौर पर किसी विषय-विशेष का ज्ञान रखता हूँ और हिंदी अथवा अंग्रेज़ी अथवा हिंग्लिश के माध्‍यम से ही प्रशिक्षण प्रदान करता हूँ लेकिन सामने कुछ प्रशिक्षणार्थी किसी ऐसे प्रदेश से संबंध रखते हैं जहां हिंदी अथवा अंग्रेज़ी अथवा हिंग्लिश का प्रयोग नहीं होता है तो प्रशिक्षक का ज्ञान उसके उसके मन-मस्तिष्‍क में कम और उसके आसपास से ज्‍यादा जाने लगता है। ऐसे में, मैं सोचता हूँ कि यदि एक राज्‍य विशेष के अधिकारियों/कर्मचारियों के लिए ही प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं और प्रशिक्षक भी उसी राज्‍य विशेष के हों और वे उस राज्‍य विशेष की मुख्‍य भाषा में प्रशिक्षण प्रदान करें तो प्रशिक्षण कार्यक्रमों की उपयोगिता और सफलता कई गुना बढ़ जाएगी। अब यहां पर यह सवाल भी उठ सकता है कि केंद्रीय सरकार के अधिकारियों/कर्मचारियों को हिंदी अथवा अंग्रेजी अथवा दोनों भाषाओं के माध्‍यम से काम करना होता है और प्रशिक्षण सामग्रियां (दस्‍तावेज़/पीपीटी प्रस्‍तुती आदि) इन्‍हीं दो भाषाओं में हो सकती हैं। इसी स्थिति को ध्‍यान में रखते हुए ही मैंने ऊपर कहा है कि जिस राज्‍य में स्थित केंद्रीय सरकार के कार्यालयों के अधिकारियों/कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाना है उसी राज्‍य के ही प्रशिक्षक अपनी भाषा में प्रशिक्षण प्रदान करें भले ही प्रशिक्षण सामग्री अंग्रेज़ी अथवा हिंदी अथवा दोनों भाषाओं में ही क्‍यों नहीं हो। राष्‍ट्रीय उत्‍पादकता परिषद् के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भी मैंने अपने विचार की पुष्टि होते हुए देखी जब स्‍क्रीन पर पीपीटी प्रस्‍तुती तथा प्रशिक्षण सामग्री अंग्रेज़ी में मौजूद थी लेकिन ओडिशा स्थित केंद्रीय सरकार के कार्यालयों के प्रतिभागी स्‍थानीय प्रशिक्षकों से उडि़या भाषा के माध्‍यम से संवाद कर अपने प्रश्‍नों का उत्‍तर और अधिक बेहतर ढंग से प्राप्‍त कर रहे थे।

       यह लेख ज्ञान-गंगा में डुबकी की अविस्‍मरणीय यात्रा एवं इसके अविस्‍मरणीय पथिकों को समर्पित है।


(सुनील भुटानी)
लेखक एवं अनुवादक
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