भारत जिस तरह गणतंत्र
की 73वीं वर्षगांठ और
स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश
कर रहा है, ऐसे में एकता, अखंडता और संप्रभुता सहित संविधान के
सिद्धांतों और आदर्शों को कायम रखने वाले गणतंत्र
के केन्द्र बिन्दु के रूप में संसद का अभिवादन करना उचित है। यह संविधान के
अनुच्छेद 1
की भावना के साथ प्रतिध्वनित होता है जो यह घोषणा करता है कि "इंडिया अर्थात
भारत, राज्यों का एक संघ
होगा'’. संसद ने वर्षों से
विविधता के बीच एकता को सफलतापूर्वक बनाए रखा है और देश में लोकतंत्र को मजबूत
किया है। जब हम आत्मनिरीक्षण करते हैं और इसकी
उपलब्धियों और विफलताओं का आकलन करते हैं, ऐसे में 1954 में पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री सर
एंथनी ईडन के शब्दों को स्मरण करना सार्थक है, "भारतीय उद्यम हमारे
यहां के अभ्यास की कोई फीकी नकल नहीं है, बल्कि एक बड़े पैमाने
पर और कई गुणा प्रतिकृति के रूप में है जिसके बारे में हमने कभी सपने में भी नहीं
सोचा था। यदि यह सफल होता है, तो एशिया पर इसका अच्छा प्रभाव अनुमान
से परे है। परिणाम कुछ भी हो, हमें उन लोगों का सम्मान करना चाहिए
जिन्होंने इसे करने का प्रयास किया। जब भारत ने महान
स्वतंत्रता संग्राम के बाद उपनिवेशवाद की दासता से खुद को मुक्त किया, तो राष्ट्र के सामने यह चुनौती थी कि
देश की विशालता और उसके अनुरूप आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई बहुलता और विविधता
तथा सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को ध्यान में रखते हुए
शासन की एक प्रणाली कैसे स्थापित की जाए। उदार लोकतांत्रिक
व्यवस्था की पूर्वपिक्षा के रूप में आर्थिक और शैक्षिक उन्नति की अनिवार्यता के
पक्षकार कई लोगों ने अपनी आशंका व्यक्त की कि वेस्टमिंस्टर मॉडल, विदेश से उधार लिया गया, देशी धरती पर लागू होने पर कार्य कुशल
होगा। लेकिन बाद में, लाखों मतदाताओं ने, जो अन्यथा अनपढ़ और अशिक्षित थे, अपनी मजबूत और सांसारिक समझदारी से
कयामत की भविष्यवाणियों को गलत साबित कर दिया। (शब्दों की सं. 312)
- Sunil Bhutani 'Rudraksha'
Email: translationclassroom@gmail.com
No comments:
Post a Comment