पुरातन काल से ही भाषा प्रभावी संचार का एक अनिवार्य घटक रही है। इस तरह से भारत अनेकानेक भाषाओं और बोलियों से समृद्ध रहा है और यह बात जहां एक ओर संचार को चुनौतीपूर्ण बनाती है, वहीं दूसरी ओर व्यापक शब्दावली और उपयोग के चलते उसे संपन्न भी बनाती है। भाषाओं की व्यापक विविधता के कारण हर व्यक्ति अथवा हर उद्देश्य के लिए उपयुक्त वाला सिद्धांत यहां फिट नहीं बैठता। एक भाषा की संचार रणनीतियां दूसरी भाषा से भिन्न होती हैं। उनमें भूगोल और एक भाषा विशेष को बोलने वाले लोगों की संख्या की दृष्टि से भिन्नता होती है। ज्यादा दूर क्यों जाएं? जम्मू और कश्मीर के भीतर, प्रमुख रूप से बोली और लिखी जाने वाली चार भाषाएं हैं जम्मू में डोगरी, हिंदी और अंग्रेजी, जबकि कश्मीर में कश्मीरी, उर्दू और अंग्रेजी। हालांकि भौगोलिक दृष्टि से यह इलाका पहाड़ी है और सर्दियों के मौसम में बर्फ के कारण इसके ऊंचाई वाले क्षेत्रों का संपर्क अधिकांशतः कटा रहता है। इसके बावजूद पिछली जनगणना रिपोर्टों के अनुसार, डोगरी बोलने वालों की संख्या कश्मीरी बोलने वाले लोगों की संख्या से आधी से भी कम है। यद्यपि ये आंकड़े किसी संचारक के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं, लेकिन इन दोनों भाषाओं की विविधता शब्द भंडार और उनके उपयोग में बहुत कुछ जोड़ती है। हालांकि प्रौद्योगिकी के संबंध में हमने देखा कि पिछले दो वर्षों के दौरान प्रौद्योगिकी आधारित संचार उपकरणों की सहायता से अनेक बाधाओं को दूर किया गया है। कोविड या नो-कोविड, लोगों ने संचार चैनलों को खुला रखने के लिए अपने जीवन में प्रौद्योगिकी को स्वीकार किया है। क्लासरूम की पढ़ाई, समूह बैठकों, नुक्कड़ नाटकों तथा व्यक्तिगत भागीदारी की आवश्यकता वाली अनेक गतिविधियों ने ऑनलाइन माध्यम का रुख कर लिया है। गतिविधियां बदस्तूर जारी रहीं, फिर भी विशेषज्ञों के दृष्टिकोण में संचार की प्रभावकारिता में कमी आई। ऐसी परिस्थितियों में, विज्ञान संचार और लोकप्रचार भी अपवाद नहीं रहा। (शब्दों की सं. 306)
- Sunil Bhutani 'Rudraksha'
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