आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए.आई.) जिसे हम हिंदी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता कहते हैं, जिससे स्वत: ही स्पष्ट हो रहा है कि ऐसी बुद्धि जो कृत्रिम है और इंसान द्वारा बनाई गई है। इस बुद्धि के निर्माण में इंसान की भूमिका है, भगवान की नहीं। यहाँ इंसान ही ब्रह्मा बनकर एक ऐसी सृष्टि की रचना करना चाहता है जो उसी के इशारे पर चले। आज का इंसान आधुनिक तकनीकों के माध्यम से मशीनी इंसान (यानि रोबोट/मशीनें) तैयार कर भगवान को चुनौती देते हुए दिखाई दे रहा है। ब्रह्मा जी की रचना (इंसान) के मस्तिष्क से उत्पन्न ए.आई. तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करेगा या भस्मासुर बन कलयुग के अंत की नींव रखेगा, यह सवाल भविष्य के गर्भ में पुष्पित हो रहा है।
भारतीय सभ्यता और संस्कृति इस
पृथ्वीलोक पर सबसे प्राचीन है। भारतीय सभ्यता सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग के
कालचक्र को पूरा कर कलयुग में भ्रमण कर रही है। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की
नींव वेदों, उपनिषदों और
पुराणों में वर्णित ज्ञान पर मज़बूती से टिकी हुई है। भारतीय ज्ञान परंपराओं का
अध्ययन कर विश्व की सर्वोच्च संस्थाओं ने समय-समय पर कई ऐसी तकनीकें विकसित की
हैं जो दुनिया को चौंधियाती रही हैं। भारतीय ऋषि-मुनि परंपरा में ध्यान-योग-साधना
के माध्यम से विश्व ही नहीं, ब्रह्मांड में कहीं भी घटित हुई या भविष्य में घटित होने वाली घटना के बारे
में सटीक जानकारी दे दी जाती थी। शरीर की एक नब्ज़ को टटोल कर शरीर के स्वास्थ्य
की हालत को बता दिया जाता था। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हीलिंग के माध्यम से
बीमार शरीर को स्वस्थ कर दिया जाता था। बहुमूल्य ज्ञान की पोथियों को पढ़कर
मस्तिष्क में समा लिया जाता था। इस कलयुग से पहले के तीनों युगों में हुए
महायुद्धों में इस्तेमाल किए गए तीर (वर्तमान में जिन्हें मिसाइल या
प्रेक्षापास्त्र कहा जाता है) अभिमंत्रित कर प्रकट किए जाते थे। सम्पूर्ण पृथ्वी
को नष्ट करने की क्षमता रखने वाले ब्रह्मास्त्र (जोकि वर्तमान के परमाणु या
हाइड्रोजन बम से भी कहीं ज्यादा विनाशकारी थे) भारतीय सभ्यता में मौजूद रहे हैं। कलयुग में
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम विस्फोट
हुए जिसका सम्पूर्ण पृथ्वीलोक के नज़रिये से सीमित प्रभाव रहा, वहीं भगवान श्री
कृष्ण महाभारत के युद्ध में ब्रह्मास्त्र के प्रयोग को रोकने के लिए हमेशा सतर्क
रहे क्योंकि वे जानते थे कि ब्रह्मास्त्र के प्रयोग से संपूर्ण पृथ्वीलोक नष्ट
हो जाएगा।
आधुनिक युग (कलयुग) में पश्चिमी
और यूरोपीय सभ्यताएँ एवं संस्कृतियाँ आधुनिक तकनीकी ज्ञान के माध्यम से दुनिया
को अपनी मुट्ठी में करने की कोशिश करती रही हैं। विनाशकारी आधुनिक हथियारों और
राजनीतिक एवं आर्थिक ताक़त के बल पर चुनिंदा देश दुनिया पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष
रूप से अधिपत्य स्थापित करना चाहते हैं। पिछले कुछ वर्षों में, आर्टिफिशियल
इंटेलिजेंस (ए.आई.) तकनीक तेजी से विकसित हुई है। इस तकनीक को विकसित करने में ओपन
ए.आई., गूगल डीपमाइंड, एन्थ्रोपिक, माइक्रोसॉफ्ट ए.आई., आईबीएम वॉटसन, एनवीडिया, मेटा ए.आई., एमाजॉन ए.डब्ल्यू.एस.
ए.आई., टेस्ला ए.आई. जैसी
कंपनियाँ अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। इतिहास गवाह है कि आधुनिक तकनीकों से संपन्न
देश ही आर्थिक रूप से समृद्ध रहे हैं। ए.आई. क्रांति से पहले सूचना प्रौद्योगिकी
(आई.टी.) क्रांति ने दुनिया को चौंकाया था। आई.टी. क्रांति के दौर में ऐसा लगने
लगा था कि इंसान की जगह कंप्यूटर ले लेंगे और अब ए.आई. क्रांति के दौर में ऐसा लग
रहा है कि ए.आई. इंसान के दिमाग़ की जगह ले लेगा। आई.टी. क्रांति बाढ़ की तरह लगती
थी तो वहीं ए.आई. क्रांति सुनामी की तरह लग रही है।
भारत एक ऐसा देश है जिसने तीन
युगों में हीरक काल तो वहीं इसी कलयुग में स्वर्णकाल देखा है, और 1990-91 के दौर
में दिवालियेपन की दहलीज़ तक भी पहुँचा था। इन्हीं उतार-चढ़ाव के बीच, पश्चिम से आई.टी.
क्रांति की आँधी ने भारत में खलबली मचा दी थी। इस क्रांति के गर्भ से, ‘कंप्यूटर’ का उदय हुआ था जिसे
ठंडे-ठंडे वातानुकूलित कमरे में विराजमान किया जाता था और लोग चप्पल-जूते उतार कर
कमरे में जाया करते थे। युवाओं को लगने लगा था कि ये अंग्रेज़ी ’कंप्यूटर बाबा’ हम सबको बेरोज़गार
करके छोड़ेगा। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ, लोग कंप्यूटर के
अभ्यस्त होते गए और वही मोटा कंप्यूटर, स्लिम कंप्यूटर में बदल गया। स्लिम कंप्यूटर, लैपटॉप में बदलते
हुए स्मार्ट मोबाइल फोनों में समा गए हैं। हर हाथ में, स्मार्ट मोबाइल
फोन ने आई.टी. क्रांति के दानव रूपी ‘कंप्यूटर’ को मुट्ठी में कर लिया। रही सही क़सर, कोविडकाल ने पूरी कर दी, जब छोटे से लेकर बड़े बच्चों के हाथ में भी दानव
के बच्चे आ गए और वे उनसे खेलने लगे। आज हर छोटे से बड़े, कम पढ़े-लिखे से ज्यादा
पढ़े-लिखे और ग़रीब से अमीर लोगों तक ‘छोटू’ कंप्यूटर पहुँच गया है।
वर्तमान में, आई.टी. क्रांति में
पुष्पित-पल्लिवित हुई ए.आई. क्रांति रुपी सुनामी संपूर्ण विश्व को अपने आगोश में
ले रही है। प्रकृति का नियम है, जो जितने मज़बूत एवं संगठित होते हैं, वो हर आंधी, तूफ़ान, चक्रवात, सुनामी आदि का
सामना कर नई सुबह के सूरज की तरह उभर कर आते हैं। भारत का तो इतिहास ही
आंधी-तूफ़ानों से लड़ने वाला रहा है। भारत ने हमेशा इंसानी जिंदगी को सुखमयी एवं
आरामदेय बनाने वाली तकनीकों का स्वागत किया है। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, ऐसे ही ए.आई.
क्रांति के भी दो पहलू हैं। ए.आई. तकनीक मूलत: व्यापक एवं तथ्यात्मक डेटा की
उपलब्धता पर के आधार पर सटीकता प्रदान करती है। इसलिए, दुनियाभर में
साम-दाम-दंड-भेद किसी भी तरह से डेटा संग्रहण की होड़़ लगी हुई है, वहीं डेटा संग्रहण
केन्द्र यानि डेटा सेंटरों की मांग निरंतर बढ़ रही है जहां डेटा सुरक्षित रखा जा
सके। डेटा सेंटरों के निर्माण बड़े पैमाने
पर हो रहे हैं, कई कंपनियों के पास
तो इतना डेटा हो गया है कि उसे संभालने के लिए जगह नहीं है और ये सेंटर बहुत ज्यादा
बिजली उपभोग कर रहे हैं और गर्मी पैदा कर रहे हैं। नामी कंपनियाँ अपने डेटा को
बड़े-बड़े कैप्सूलों में सुरक्षित कर समुद्र की गोद में रख रहे हैं। भविष्य में, आम उपभोग के लाखों
टन कचरे के साथ-साथ डिजिटल कचरा भी इतना ज्यादा होने लगेगा कि उसके निस्तारण
(डिस्पोज़ल) के लिए नए-नए उपाय करने होंगे।
दुनिया में तकनीकी रूप से समृद्ध
अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी जैसे देशों
ने दुनिया को सबसे अधिक तकनीकें दीं जिससे लोगों की जिंदगी आसान बनी। बदले में,
इन देशों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़े मुकाम हासिल किए। अमेरिका
एक ओर जहाँ सूचना-प्रौद्योगिकी क्रांति का जनक रहा है, वहीं अब
आई.ए. क्रांति का भी जनक बनकर उभरा है। आज दुनिया सूचना-प्रौद्योगिकी के मामले में
पूरी तरह से अमेरिका पर निर्भर है और ए.आई. के मामले में भी ऐसा ही दिखाई दे रहा है।
एनवीडिया, ओपन ए.आई., गूगल, मेटा, टेस्ला जैसी ए.आई. कंपनियाँ
दुनिया में ए.आई. क्रांति का नेतृत्व कर रही हैं। सूचना क्रांति की शुरूआत से अब तक
भारतीय आई.टी. कंपनियाँ अमेरिकी दिग्गज अमेरिकी आई.टी. कंपनियों की रीढ़ की हड्डी
रही हैं। लेकिन, अब वैश्विक परिस्थितियाँ बदली दिख रही हैं और
अमेरिकी कंपनियाँ ए.आई. तकनीक को साझा कर भारतीय आई.टी. कंपनियों से उस तरह काम नहीं
करवाना चाहती हैं जैसे वे अब तक करती रही हैं। अमेरिका इस ए.आई. तकनीक पर एकाधिकार
चाहता है, खुद के बनाये ए.आई. प्रोटोकॉल दुनिया भर में लागू करना
चाहता है। अमेरिका का निकटतम प्रतिद्वंद्ववी चीन, अमेरिका के
एकाधिकार को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है और खुद की ए.आई. तकनीक और प्रोटोकॉल
विकसित कर रहा है। हाल ही में, अमेरिका ने चीन को ए.आई. तकनीक
में आगे बढ़ने से रोकने के लिए अपनी एनवीडिया कंपनी को चीन को ए.आई. की नब्ज़ चिप
का निर्यात करने से रोक दिया था, वहीं रक्षा उपकरणों,
इलेक्ट्रिकल वाहनों, विंड टर्बाइन, बैटरियों, सोलर पैनलों आदि के निर्माण में बेहद जरूरी
रेयर अर्थ मेटल्स के बादशाह चीन ने अमेरिका को इनकी आपूर्ति रोक दी थी जिससे अमेरिका
को चीन के साथ विशेष समझौता करके एनवीडिया की ए.आई. चिप की आपूर्ति शुरू की वहीं चीन
ने रेयर अर्थ मेटल्स की आपूर्ति बहाल कर दी। इस तरह, ए.आई. क्षेत्र
की दो महाशक्तियाँ दुनिया पर राज़ करने के लिए तैयार हो रही हैं। ऐसी स्थिति में,
हम भारतीय आई.टी. कंपनियों की ओर टकटकी लगाये देख रहे हैं कि भारत कैसे
ए.आई. क्रांति में अपनी जगह बनायेगा। दुर्भाग्यवश, भारत तकनीकी
विकास के मामले में अग्रणी नहीं रहा है, अपितु तकनीक विकसित करने
वाले देशों को कुशल एवं सस्ती सहयोगी सेवाएँ प्रदान करता रहा है। भारतीय आई.टी. कंपनियाँ
फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, यूटयूब जैसे सोशल मीडया प्लेटफार्म तैयार नहीं कर पाई, जबकि दुनिया में सबसे ज्यादा भारतीय ही इन प्लेटफार्मों का प्रयोग करते हैं।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा तकनीक उपभोक्ता देश है, अगर भारत ने
जल्द ही अपनी ए.आई. तकनीक विकसित नहीं की तो तेल खरीद के बाद ए.आई. वाले तकनीकी उत्पादों
के खरीद के मामले में दूसरा सबसे बड़ा आयातक बन जाएगा जिससे हमारे विदेशी मुद्रा भंडार
पर भारी दबाव पड़ेगा।
जहाँ तक, ए.आई.
क्रांति का भारत पर प्रभाव का सवाल है, जहाँ सारी दुनिया
के देश प्रभावित होंगे तो वहीं भारत भी प्रभावित तो होगा। रोज़गार के अवसरों पर असर
पड़ सकता है, सोशल मीडिया उपयोक्ताओं को डीपफेक जैसी चुनौतियों
का सामना करना पड़ सकता है, विभिन्न कलाओं के माहिर लोगों को
ए.आई. द्वारा चंद सेकेंडों में निर्मित कलाकारियों से दो-चार होना पड सकता है,
निजता के अधिकारों पर संकट खड़ा हो सकता है, ए.आई.
तकनीकों का कुशलता से प्रयोग करने वाले लोग सामान्य उपयोक्ताओं के मुकाबले ज्यादा
और जल्दी अमीर होने लगेंगे जिससे अमीरी और गरीबी की खाई चौड़ी हो सकती है,
लोग ए.आई. तकनीक पर इस कद्र निर्भर होने लगेंगे कि खुद की सोचने-समझने
की शक्ति क्षीण होने लगेगी और इंसान रोबोट में बदलने लगेगा। लेकिन, मैं एक बात विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि भारत दुनिया में ए.आई. का सबसे
मज़बूती से सामना करेगा और इसे आपदा में अवसर की तरह लेकर 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र
बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करेगा। भारत दुनिया में सबसे युवा देश है जो तकनीक को
आत्मसात करने के मामले में बेहद सजग है। ए.आई. तकनीकें वैश्विक पर्यावरण के संकट को
दूर करने में अहम भूमिका निभायेंगी जिससे भारत को सबसे अधिक लाभ होगा क्योंकि भारतीय
अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है और कृषि ही सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है। स्वास्थ्य
के क्षेत्र में भारत को विश्व मेडिकल कैपिटल कहा जाता है, विकसित
और विकासशील देशों के लोग सस्ते एवं सटीक इलाज के लिए भारत आते हैं। मेडिकल क्षेत्र
में ए.आई. के उपयोग से सबसे ज्यादा लाभ भारत को ही होगा। भारत में खनन क्षेत्र,
रोजगार एवं आर्थिक विकास के मामले में बेहद उपयोगी है और इस क्षेत्र
में ए.आई. तकनीक से नई-नई एवं बहुमूल्य खदानों और तेल एवं गैस की खोज की जा सकती है
जिससे भारत का नसीब बदल सकता है। सरकारी एवं निजी क्षेत्रों में ए.आई. तकनीकों से उत्पादकता
में वृद्धि होगी, इससे होने वाली आर्थिक बचत को जनकल्याण में
लगाया जा सकेगा। अंतरिक्ष विज्ञान के मामले में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल
है, हर साल दुनिया के कई देशों के सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेजता
है और मंगल एवं चाँद पर पदार्पण के साथ-साथ सूर्य के बेहद करीब जाकर अध्ययन कर रहा
है। इस क्षेत्र में, ए.आई. तकनीकों के प्रयोग के बाद भारत का
अंतरिक्ष विज्ञान क्षेत्र सोने का अंडा देने वाला क्षेत्र बन सकता है। भारत खाद्यान्नों
के उत्पादन के मामले में अग्रणी देश है जो दुनिया की एक बड़ी जनसंख्या का पेट भरने
की काबलियत रखता है, भले ही दुनिया ए.आई. की दुनिया में रहेगी,
लेकिन खायेगी तो प्राकृतिक खाद्यान्न ही।
निष्कर्षत:, ए.आई. वर्तमान एवं भविष्य की सच्चाई है, इसे हमें जितनी जल्दी स्वीकार करेंगे उतनी जल्दी इसका सामना करने या उसका लाभ उठाने के लिए तैयार होंगे। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति दुनिया में सबसे उत्कृष्ट है जिसे ए.आई. के प्रभाव से कलंकित नहीं होने देना है। वसुधैव कुटुम्बकम् की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, ए.आई. के फ़ायदों को छोटे-बड़े देशों तक पहुँचाना है। हमारे वेद, पुराण एवं उपनिषद आदि सदैव हमारे मार्गदर्शक रहे हैं, आधुनिकता के साथ इनके अनुसरण से हम भारत को विश्व पटल पर स्थापित रख सकते हैं। भारत की सबसे बड़ी ताक़त दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाज़ार होना है जिसमें उतरने के लिए दुनिया की ए.आई. शक्तियाँ भारत को साथ लेकर चलने के लिए तत्पर होंगी। दुनिया में ए.आई. को इंसान का विकल्प बनाने की हर कोशिश की जाएगी, लेकिन हमें इसे अपना एवं रिश्तों का विकल्प नहीं बनने देना है। ए.आई. को वरदान बनाना है, अभिशाप नहीं।
लेखक एवं कॉपीराइट: सुनील भुटानी 'रुद्राक्ष'
sunilbhutani2020@gmail.com
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