कल, एक मित्र ने घटना बताई। एक परिवार में तीन भाई और उनके परिवार तथा तीनों भाइयों के पिता थे। दो भाई अपने-अपने परिवार सहित अलग-अलग शहरों में रहते थे। सबसे छोटा भाई छोटी-मोटी प्राइवेट नौकरी करके 20-25 हजार रूपये महीना कमाता था। इन भाईयों के पिता पेंशनर थे और सबसे छोटे भाई के साथ के साथ रहते थे। इस तरह सबसे छोटे भाई और पिता का सही गुज़ारा चल रहा था। दोनों बड़े भाई भी बुजुर्ग पिता की जिम्मेदारी से मुक्त थे। कोरोनाकाल में एक दिन अचानक बुजुर्ग पिता की तबीयत बिगड़ी और टेस्ट करवाने पर कोरोना पॉजिटिव पाए गए। अभी घर में इलाज शुरू ही किया था कि दूसरे-तीसरे दिन ही उनकी मौत हो गई। पिता की मौत के साथ ही सबसे छोटा भाई गहरे सदमे में चला गया। सोचने लगा कि अब उसका घर कैसे चलेगा। इस बीच, किसी के सुझाव पर सबसे छोटे भाई ने कोरोना टेस्ट करवाया। पिता के अंतिम संस्कार के लिए दोनों भाईयों को बुलाया गया। वे अपनी-अपनी गाड़ी से छोटे भाई के घर पहुंचे। तीनों भाइयों और आस-पड़़ोस के दो-तीन लोगों ने मिलकर बुजुर्ग पिता का संस्कार किया। बुजुर्ग की मृत्यु के तीसरे दिन तीनों भाई श्मशन से अस्थियां चुनकर लौट रहे थे तो टेस्ट पता चला कि सबसे छोटा भाई भी कोरोना पॉजिटिव है। ऐसे में, दोनों भाईयों ने छोटे भाई के घर के अंदर जाने से मना कर दिया और पंडित जी से तीसरे दिन ही सभी रस्में पूूूूरी करवा लीं और उसी दिन वापिस लौट गए। सबसे छोटा भाई डिप्रेशन के रसातल मेंं जा चुका था। दोनों भाई कुछ किलोमीटर ही गए होंगे कि उन्हें खबर मिली कि उनका सबसे छोटा भाई इस दुनिया में नहीं रहा।
- सुनील भुटानी 'रूद्राक्ष'